जगदीशाष्टकम् (दीप चारण कृत)

जगदीशाष्ठकम् ( दीप चारण कृत)

  ।।  दोहा ।।

सुर दे   माता  सारदे,   अम्बा  दे  आशीष।
लछमी माते लाज रख,जपे दीप जगदीश।।

      ।। छंद मोतीदाम ।।

तुहीं मम मात तुहीं मम तात।
तुहीं मम मीत तुहीं मम भ्रात।।
समो झट आय मिलो घल बाथ।
नमो जगदीश निरंजन नाथ।।   [1]

तुहीं मम भीर, तुहीं मम पीर।
तुहीं मम लाज, तुहीं मम चीर।।
लगूं नित पाय, नमे नित माथ।
नमो जगदीश निरंजन नाथ।।  [2]

बसा उर कान सदा धर ध्यान।
उचार विचार सुसार सुजान।।
सदा सिंवरे जन जोड़'र हाथ।
नमो जगदीश निरंजन नाथ।।  [3]

तुहीं गिरि ओड़ सुरेश मरोड़।
तुहीं तम तोड़ तुहीं रणछोड़।।
प्रभू! परमेश सदा रह साथ।
नमो जगदीश निरंजन नाथ।।  [4]

सुणे तु सदाय करूण पुकार।
जपूं जय जैय करूंह जुहार ।।
नशीब सुधार इ ठाठज ठाथ।
नमो जगदीश निरंजन नाथ।।  [5]

तुहीं जग मंडण पालनहार।
धरा धरि दाढय आसुर मार।।
पुजे नर नार ऋषी मुनि जथ्थ।
नमो जगदीश निरंजन नथ्थ।।  [6]

तुहीं सुख वैभव देवण वाल।
तुहीं दुख भंजण दीन दयाल।।
तु कौरव कूटण ठाय भराथ।
नमो जगदीश निरंजन नाथ। ।  [7]

 तुहीं मम प्रीत तुहीं मम रीत।
तुहीं मम छंद, तुहीं मम गीत।।
तुहींज पड़ाव, तुहीं मम पाथ।
नमो जगदीश निरंजन नाथ।।   [8]

              ।। छप्पय।।

कंसां करण तमाम, कान्ह नव रास रचायो।।
रावण रोलण राम, अयोध्या रघुकुल आयो।
लीला कर कर लाख, जग ने नित जगमगायो।
चटपट माखन चाख, छलियो वृंदावन छायो।।
ते भख बोर भीलणी तणा, भक्त रिझाया ते घणा।
भगवन वर दे कवि दीप ने, भणे स्तुति छंदड़ा बणा ।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण


Comments

Popular posts from this blog

काम प्रजालन नाच करे। कवि दुला भाई काग कृत

आसो जी बारठ

कल्याण शतक रँग कल्ला राठौड़ रो दीप चारण कृत