पोंपली रा सौरठा
पोंपली रा सौरठा
सह स्विस वालो केश, भेलो धर धन भारियो।
जाइ बैगी बिदेश, पोंपा चढने पालखी ।।
बोटा में मीठी बोल, जन धन ब्होत बुहारियो।
जनतंत्र पोलम पोल, परवाण चढ़ि हि पोंपली।।
दीन रो दुःख अखूट, राड़ा देसी रांड त्नै ।
लीवी मुरधरा लूट, पड़सी कीड़ा पोंपली।।
आदम कर अपराधि, काम निज्ज रा काढिया।
गीरती देख गाद्दि, पाड्या दगेउ पोंपली ।।
रथ चढ रूलंतीह , गाढो जन धन ढोलियो।
लाज न आवंतीह, रक्तमद पिते पोंपली।।
पोल ऊंचली राख, दिग्गजां ने नि धारती।
गटकत दारू दाख, पग ते पग रख पोंपली।।
जाती ने जूहार, बांगरी लारे फेरसा ।
भू तज ज्यूं भरतार, पाछल न फोरि पोंपली।।
धोबा भर भर धूड़, बैगी लारे बालसां ।
फकत (थूं) निकली फूड़ , पछि मत मरजे पोंपली।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
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