छप्पय छंद वर दे वीणापाणि,विद्या विरद विरदांऊ। वर दे वीणापाणि,दिव्य गुण देवी गांऊ।। वर दे वीणापाणि,नित्य मां शीश नमाऊ। वर दे वीणापाणि,जिह्वा ज्योती जगाऊ।। साद दीप दे सारदा, साहित्य शब्द सार दे। जोउ बाट कर जोड़तो, तरणी शब्दां तारदे।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण छप्पय छंद रो प्रथम प्रयास वंश रिषी रा वीर, संभल जा रीत सुधारण। वंश चंद्र रा वीर, जागजा जग्ग जगावण ।। वंश भाण रा वीर, भभक जा असुर भगावण। वंश अगन रा वीर, धधक जा दाळद जारण । मर्द मुवा अब जाग जा,रीत रुखाळण बापरी । लक्ष्य भेदण लाग जा, लाज रखण कुळ आपरी।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण भावार्थ कवि छप्पय छंद का प्रथम प्रयास करता हुआ लिखता है कि हे ऋषिवंश, वंशज वीर क्षत्रीयों अब संभल जा अपने बिगड़ते हुवे संस्कार और संस्कृति को संभालने के लिए, इसलिए अपनी रीति रिवाज संभाल, हे चंद्र वंश वंशज वीर क्षत्रीयों तुम भी अब जाग जाऔ इस सोये हुवे संसार को जगाने के लिए तुम्हारे दादा कृष्ण की यदा यदा ही धर्मस्य वाले श्लोक सार्थक करो। हे सूर्य वंश वंशज वीर क्षत्रीयों अब तुम भी सूर्य की तरह भभक जाओ और अपने त...