मयूर माहोल
गायत्री (मां) दे ज्ञान , माहोल ओ मयूर रो ।
पी अठे अमृत पान , छावे जग मा छात्र छै ।।
रूंख हरो रेवंतजी , बाग ओ पाय छांह ।
पनपता अठे पुष्प जो , महके जग री राह ।।
साइन्स अठे सांतरी , पढां डाक्टर बणाय ।
गजब पढेह अठे गणित ,अभियंता बण जाय।।
ज्ञान ले अठेउं गया , बणे आइ ए एस ।
पाकर ऊंचा ओहदा , खुब कमाय छै केस ।।
मोती निपजत सीप , ज्ञान समंदा मायनै ।
देख कहे कवि दीप , माहोल ओ मयूर रो ।।
•••••••••••••••••••••••••दीप चारण
पी अठे अमृत पान , छावे जग मा छात्र छै ।।
रूंख हरो रेवंतजी , बाग ओ पाय छांह ।
पनपता अठे पुष्प जो , महके जग री राह ।।
साइन्स अठे सांतरी , पढां डाक्टर बणाय ।
गजब पढेह अठे गणित ,अभियंता बण जाय।।
ज्ञान ले अठेउं गया , बणे आइ ए एस ।
पाकर ऊंचा ओहदा , खुब कमाय छै केस ।।
मोती निपजत सीप , ज्ञान समंदा मायनै ।
देख कहे कवि दीप , माहोल ओ मयूर रो ।।
•••••••••••••••••••••••••दीप चारण
Comments
Post a Comment