सजनी री नींद

सजनी बेगी सोवती , अणुती उंघज आय ।
बिलखे रातां बालमो , जोवे कोय उपाय ।।

कुंभकरण री बाप छै , घोरे आ तो नींद ।
दीप ज्यां जगे रातभर , बले बादिलौ बींद ।।

•••••••••••••••••••••••दीप चारण


खोजी कवि मन खोड़िलो, बड़बड़ावतो बींद।
नाटक करैह नित नया, ना   लेवण  दे  नींद।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

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