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Showing posts from May, 2016

।।पिया को पाति।।

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।।पिया को पाति।। बूंद बूंद कागद पड़ी , धूजण लागी देह । आखरिया आला हुआ , नैणा आयो मेह ।। ••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण साजन नै संदेसडो , कै दे उडे कपोत । प्यारी थांकी पीवजी , बिरह झुरिह बहोत ।। ••••••••••••••••••••••••दीप चारण प्याला भर पाऊं पिया , जोबन सुराहि जोर । कंत  देर ना कीजिये , भयी अडिकतां भोर ।। •••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण गुजर गया वो दौर , दास्ता इस दिल की लिये यादें करती शौर , बीती बसंत ब्यार की ।। •••••••••••••••••••दीप चारण "

कविता -: पृथ्वीराज चौहान (दीप चारणकृत )

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कविता -: पृथ्वीराज चौहान (दीप चारणकृत ) भारत भूमिह जण्णिया , अनेक वीर सपूत । प्रीत पालक पृथी हतो ,घण रांगड़ रजपूत ।। हतो पराक्रमी बड़ो , पृथी राज चहुआण ।  वाह रे रजपूत , अजमेर धणिया , सह नी सकिया , थारो ताप सलतनत रा भला भला सुलताण । हतो पराक्रमी बड़ो,  पृथी राज चहुआण । द्वारपाल री मुर्ति बणाय , जयचंद सुलताण । पृथीराज रो , कियो घणो अपमान ।। तिलमिला उठियो मूँछ ने मरोड़,  चहुआण ने आयगियो जोश । ले गियो संयोगिता ने उठाय , जयचंद रा उड़ गिया होश ।। मुखड़े माथे नूर ज्यूं , उंचो उगियो भाण । चंद कह्यो पृथ्वी थूं म्हारी आ बात जाण ।। चार बांस चौबीस गज अंगुल अस्ट परवाण । तहा खड़ो सुलताण है चुके मते चहुआण ।। (चंदबरदाई का दोहा ) चक्षु फुटोड़ै पृथ्वी उंचो चलायो बाण । महल माथे उभोड़ो गुड़गियो गौरी सुलताण ।। हती इनमें कला शब्द बाण भेदी । नैना फूटोड़ा तोई गौरी री मुंडी इण छेदी ।। हतो पराक्रमी बड़ो , पृथी राज चहुआण ।  वाह रे रजपूत , अजमेर धणिया , सह नी सकिया , थारो ताप सलतनत रा  , भला भला सुलताण । हतो पराक्रमी बड़ो,  पृथी राज...

जन्मदिन व शादी सालगिरह

मौज मई भइ मौकली , जन्मदिन (री)आइ विस्स। इक खरचै द्उ मनावसां , ऐन्वरसरि इक्किस्स ।। कंठ सूखिया विस करे , पाय न मैंगो जूस । नुकरो कैक चखाय ना , कवी दीप कंजूस ।। ••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण खावणिया घण मौकळा, खड़ावणियां  बिरळाह |  दीप जिमावै कोड सूं ,तो छोडां नीं घिरळाह || °°°°°°°°°°°°°°°°°नाथू दान जी सा आसिया

चौहानां रा दोहा

दूहो दशमो वेद , तेज राखतो भाण रो । चंद बतायो भेद , चुको न बाण चहुआण रो ।। चीते जैवी चाल हो , भलो उगे मुख भाण । लोचन खीरे लाल हो , रण चमकै चहुआण ।। हठ ठाणजौ हमीर रो , हक़ धर्म धरा हेत । पालो प्रण पृथ्वी तणो , तेड़े जद रण खेत ।। चहुआण कदैइ न चुके , आवै आफत कोय । डटे हटे न न कह नटे , समी जे मौत होय ।। •••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

हिये बसे हिंगलाज

आफत आंधी आवतां , लाल री रखे लाज । आप बिना नी आसरो , हिये बसे हिंगलाज ।। टैम तोड़तो टांगड़ा , बैरी आय न बाज़ । बदन कर दे बज्र रो , हिये बसे हिंगलाज ।। डुंगर वाली डोकरी , तखत ना मांगु ताज । बिनती इती ज बाल री , हिये बसे हिंगलाज ।। मेहर करदे मावड़ी , आज सुणे आवाज़  । दुखड़ा मेटो दीप रा , हिये बसे हिंगलाज ।। गिरिवर वाली गौरजा , गिरती रोके गाज । दीपतो राख दीपड़ो , हिये बसे हिंगलाज ।। आसीस दिजै अम्बिका , क़दी न बिगड़े काज । नाक नमे दीप नितरो , हिये बसे हिंगलाज ।। हथ्थ सिर रखे बिसहथी , करे दीप कविराज। रचजे कविता रातदिन , हिये बसे हिंगलाज ।। असुर दलन तूं अवतरे , सदा चारण समाज। सातूं संग सहेलियाँ , हिये बसे हिंगलाज ।। सातूं देवी संगिनी , सोल सिणगार साज़ । भैरू ने ले भैलियां , हिये बसे हिंगलाज ।। नवदिन रम नवरातरा , नच नच करती नाज । सातूं संग सहेलियाँ , हिये बसे हिंगलाज ।। हाजर हेले होवजै , बैगीह सिंह बिराज । तरणी म्हारी तारजै , हिये बसे हिंगलाज ।। मुल्ला पढ़े निज मुल्क मा , नानी कहे नमाज़ । नद्य हिंगोल नहावता , हिये बसे हिंगलाज ।। रण मा मात रुखालिया , कित...

गरवीलो गुजरात

काग कवि रे काव्यरी , विख्यात इसर वात । देखसो कदे दीपसा , गरवीलो गुजरात।। जनमियो जठे जोगड़ो , गरबा गढवी गात। देखसो कदे दीपसा , गरवीलो गुजरात ।। आदशक्ति माँ आवड़ा ,  रमे बैनु सँग सात । आई अवतरिया जठे,(ओ) गरवीलो गुजरात ।। ••••••••••••••••••••••••••• दीप चारण જય માતાજી રી જપે, કોડ કરે કર જોડ । કુણ કરતો સૌરાષ્ટ્ર મા , હાલારાં રી હોડ ।। પાઘ હાલારિ ફૂટરી, જામ નગર કવિ જોર । અશ્વ કાઠિયાવાડ રા, ભલી ગીર ની ભોર ।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°દીપ ચારણ दो साल पुरानी यादें (पालियाद) काठियावाड़ गुजरात। आभार विजयराज सिंह जी जाड़ेजा जामनगर जामनगर जोयो जबर, पछे ग्या पालियाद। रुड़े विजय रजपूत ने, दीप देय लख दाद।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण