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Showing posts from September, 2015

कांई करो दाता ?

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कांई करो दाता ? अछी दाड़ी मूँछ वाला , दाता नाथू दान । बजाय मस्त धुन बैठा , मुरली मुख पर तान ।। [1] कांई करो हो दाता , पुछत है रोज़ पोति । राम राम रोज़ रटतां , बस इती बात होति ।। [2] किशन किशन करो दाता , शब्द ऐसो सुनाय । दादु मीरा के पद्य पर , बैठा धुनां बजाय ।। [3] गल छोटी भाव गहरा , शब्दां कह्यो न जाय । दादो पोती मिलसि कद , कोय म्हानै बताय ।। [4] ••••••••••••••••••••••••दीप चारण

सवैया (मतगयंद) नारी

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नारी (महिला)                         ||दोहा|| नारी बिन घर नर नहीं, नारी सृष्टि सृजन्न। पवन अगन जल नभ नहीं, नार बिन भू निर्जन्न।। मतगयंद (मालती ) सवैया हूकम सीस तणो मनती अपने पिव को कबहू न सतावै । पीहर छोड़'र आवत हैं पति को घर आप सजाकर गावै । घूंघट  लज्ज तणो रखती ससुराल सजा कढती मुसकावै । खूदबखूद खुदा धर नार रुपं धरती पर जीव रिझावै । ••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण

पत्नी चालीसा बिरह वर्णन

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                      [ पत्नी चालीसा]                          [बिरह वर्णन]                          ।।दोहा।। पल पल आवै याद पिय , आजा जल्दी यार । दीप को सुझी दिल्लगी , आय दिजौ दीदार ।। सिणगार बिना सादगी , सिधा सादा रंग रूप । बिन्दिया लाल भाल पर, अंजन नैन अनूप ।।                ।।चौपाई।।  नमो नमो जय पत्नी अनुपम ।  जांउ देख डर तोरो रूपम ।। [1] जयो जयो बच्चों की मैया । गावै जय जय तोरे सैंया ।। [2] ललाट ओपे बिन्दी लालम । कर में थामें झाड़ु विशालम ।। [3] पीहर जब जाय ह्रदय प्यारी । मन तड़पन होय बहुत भारी ।। [4] मोरा जिया पिया माहि बसा । फूं - फूं मुवा बिरह नाग डसा ।। [5] बिरह घटा आ डाले डेरा । भया अंधकार चहूंमेरा ।। [6] बिरहा के बाण बने बैरी । घोर घटा बन बिरहा घेरी ।। [7] पड़त बिरह की कैसी छांया । सूख गई रे मोरी काया ।। [8] जलह...

कवि भोंगल दान जी दैथा की रचनावां

 भोंगल दान दैथा (दैथा चारणों के दाता ) कहे जातें हैं आपने सात बार हिंगलाज धाम की यात्रा की थी । इनको वरदान था की सदैव उल्टी रचना करेंगें । जिस दिन सिधी रचना की तब तक ही रहेंगे । परन्तु अंत में एक बार सिधी रचना कर देते हैं । थोङी बहुत और भी जानकारी हैं । अधिक जानकारी किसी गुणी दैथा विद्वान से लें तो सही रहेगा । मुझे बहुत सालो पहले एक मित्र से एक पुरानी फटी पुरानी नोट बुक मिली थी उसमें इनकी कुछ रचना है मैं टंकन कर रहा हुं त्रुटियां हो सकती हैं काफ़ी फिर भी लिख रहुं गलती के लिए पुर्व ही माफ़ी मांगता हुं । ••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण    कवि भोंगल दान दैथा ।।गणेश स्तुति ।। साधा सांभलों सारा नित पदवी रा अखर नारा । सामीं सुंडालो कुडालों वालो जाने पीन्डारो । टीबकै भ्रया लाडू टंकरा , खाई ने थीतो खुस्स । हकल दंतौ मुड़स हूतों , कुरड़ा सुफड़ कन्न । गज हाथी ज्यों बनामां , घुमतो नाम थयों गजानन्द । …… सामेला में आवतो सीगें , बजता ढोल बीच्च । बीमारो विणाकियो थातो , खावतो गुल ने खीच्च । मेवेरी मिठाई करतो , कन्दोई जो काम । रमण सारु उदेरो रखतो , तीणनै...

देवी स्तूति छंद कृपाण घनाक्षरी

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प्रणमूं मैं प्रतपाल , सुत करणी रुखाल , करुणा मयी कृपाल, मन में दो सुर ताल । आप मात अति दयाल , पुत्र को राखजौ ख्याल , बिसरै न मात लाल , मान से मां दीप भाल ।। मद्य पी पी मतवाल , गुलाबी नैना विशाल , भलो ओपे बोर भाल , खनकै चुङी भुजाल । राजल मां रखवाल , खोड़ल मां खप्पराल , नमो  डोकरी दाढाल , थांरै बीन कुण हवाल ।। 1 सजकै सिंगार सोल , घुमर गरबे घोल , ढमं ढमं बाजे ढोल , ता ता ता त्रिशूल तोल । रुपां अछी छाछी होल , लांगी गुल ओल दौल ,  संग आवड़ हिलोल ,सातुं बहन सतोल ।। ओपे पोशाक पटोल , झलकै चीर झकोल , रमती मां रमझोल , रलिया असुर रोल । दीदार तोरो अमोल ,तुंही मां राय हिंगोल, करंती माते किलोल , बोले मां-मां दीप बोल ।। 2 छत्राली करजौ छांय , दयाली देशाण राय, मात को भक्त बुलाय , हिगंलाज हैले आय । दीप जयकार गाय , भय विपदा भजाय , सदा तुं किजै सहाय, चालक मां चालराय ।। तुं हीं सुक्ष्म खंड खंड , तुं हीं समस्त  ब्रह्मण्ड , तुं हीं ज्योति अखंड , तुं हीं चंडी चामुंड ।  सोभे गल माल रुंड ,  पाड़या तें दैत्य झुंड , असुर अति उदंड , तें हीं मार्या चंड-मुंड ।। ...