गीत - सुपंखरो - महात्मा ईशर दास जी कृत

 गीत - सुपंखरो - महात्मा ईशरदास जी कृत


कूड़ो देवरो मंडाण मूल गीरिमेर सबे कूड़ो,

कूड़ो हैं जमी को पीण्ड कूड़ो अंहकार।

कूड़ो हैं कोरंभ अंब पवन्न जमाव कूड़ो,

गीरिधारी नांहि कूड़ो एक ही गोपाल।।.    || 1 ||


खोटो माल खजाना को कोट बेट सबे खोटो,

बाजीयां तबेलो खोटो खोटो त्रिया बंद।

खोटो काम जड़ित्रा को नंग को बणाव खोटो,

मोटो खोटो नांहि एक बाल ही मुकूंद।।      || 2 ||


झूठो हेत बंधवा को गोतरी कुटुम्ब झूठो,

मात पिता सबे झूठो झूठो है मलक्क।

झूठो लाभ साहरां को पुत्र परिवार झूठो,

एक झूठो नांहि एक आत्मा अलख्ख।।.     || 3 ||


काचो काम केलकारी मीनाकारी काम काचो,

काया को बणाव काचो काचो सबै काम।

काचो राज इंद्र ही को आप ही ब्रह्माण्ड काचो,

साचो बाबा साचो एक ईशरा को श्याम।।.     || 4 ||


टंकणकर्ता :- दिलीप सिंह चारण 


गीत-सुपंखरो - :महात्मा ईशर दास जी कृत


कांई न होता पवन्न पाणी जलां थलां अहंकार,

वेद वाणी मंत्र जंत्र न होता विवेक।

धर्म कर्म चंद्र सुर न होता आकाश धरा,

या अला इस्लला अल्ला हुता आपें एक।।  


बुद्धि थकी करत्तार शक्ति निपाय बीजी,

रिद्धि-सिद्धि नवे निद्धि दीयो रंग रूप।

स्वार्थी वण्या नां प्रभु प्रमारथी वण्या शाम,

सूझे नांहि दूजो कोई जोवतां सरूप।।


त्रिगुणी चलाई माया खुंटही बणाया तीन,

एवा तीन लोक मांही तुम्हारो आधार।

ब्रहम्मा विष्णु तमे माहेश रा इस तमे भारे

तीन तीन तीन देव कीया करत्तार।।


भ्रम्मा तणी करी भेर घरी माथे दुःख भाग्युं,

तत्तकाल श्रीहरी थया तमे तयार।

मच्छा रूप धरी करी फरी फरी जोयूं महा,

शंखवा ने रोली करी वेद वाल्या चार।।


ध्रुपति नी लज्जा राखी वाजमा अनन्त धाया,

चौखा भार डूबी नांही कौरवां री चांच ।

पांचे पांडवों ना तमे खर खरा बोल पाल्या,

पांचाली ना चीर पुर्या दुवा हूवा पांच।।


चोरासीनी वाट घाट तारूं नाम लीधे छूटे,

भज्जवा थी मिटी जाय जम्मराणा भोय।

छोय जतो कीधो प्रभु षट्टरस तणो स्वाद,

चोधारा तुम्हारा खेल प्रतिपाळ छोय।।


सातहि बनाया सत्तो स्वरग्गां ठेराया सात,

निगम्म तुम्हारी बात एरसी न घात।

सात वार साथ द्वीप प्रभु तमे कीधा सार,

शामला सफेर कीधा सायरां ते सात।।


जुजवा स्वरग्ग अने नर-नारी करी जुवो,

ठीका ठीक बांधिया है जगत्त का ठाठ।

आठ पोर तुंही जपे एवा वसु आठ आठ,

आठ कुल परवत्तां जपे तने आठ।।


नवखंड नव ग्रह नवते निपायो निधी,

शेषनाग लोक तणी कीधी नव साख।

नंद बाबा घरे तणा खेल कीधा नवा नवा,

लघु वेषे चारो तमे धेनु नव लाख।।


दशरथ्थ तणा जाया रामचंद्र हुवा डाया,

जुगो जुग अखियातां वधारीया जस्श ।

लीधी सार विभीषणा दीधी लंक भली बात,

दुशमन्ना रावण रा माथा काट्या दस्स।।


अगीयार क्रोड़ प्रभु मानवी नै पृथी आपी,

चल्ले हल्ले क्रोड़ अगीयार मां संसार।

तिथी अगीयारसनूं मातम वधायूं तमे,

ईशरा प्रमेश कीधा रूद्र अगीयार।।


बहारवो मन तणो मटाडीये दीन बन्धू,

धनुष रा धारी दया करो सारधार।

बार मनू बार राशि वार तें बणाइ बीज,

बराबरी मेघनाद कीधा तमे बार।।


तेरा नाम एवा प्रभु जलमां पथ्थरा तरे,

मांड्यो धरा बीच थंभ तेरे हाथ मेर।

टेर टेर नाम प्रभु गुणी का ओधारी तमे,

तमे तमे तमे कीधा तल्लकिया तेर ।।


मेरुनो रवायो कीधो नागनां नेतरां मावा,

केतरा दाणवां देव करे कुदाकुद।

चौद लोक तणा नाथ उदधि वलोई सोधी,

शामला रतन्न लीधा ते समे चउद।।


धरी धरी टेक मुनि ज्ञान ध्यान धरी धरी,

हरी हरी हरी भजे तजोने हुन्नर।

अरी अरी अरी कैक दहीतां संहार्या आगे,

पुरी तिथि बराबरी कीधी थें पन्नर।।


करी तमे झलोमलं चंद्रमा ने सोल कला,

सोल ही निपाया मेवा हुवा चक्क चोल।

रूक्कमणी राधाजी ने आपीया अथाह रूप,

शणं गार लुंबे झूंबे बणावीया सोल ।।


बाजी खोटी सप्तदस तणी बणी जाणी बधी,

मणी मणी मणी साधो ओऊंकार मंत्र।

मंत्र गणी गणी भांजी नाखी विश्व घाट मोटी,

शोध छत्रपति फेलकार कीया छत्र।


केवियां अठार क्रोड़ राखसों संहार कीधा,

धरा आभ बीच कीधा पोल रा ढंढार।

अठार पुराण त्यूं कुराण चार वेद एवा,

अंक वर्ण अठार वनस्पती अठार।।


ओगणी अनंत प्राण शामला रै शर्ण आया,

वामन ने हाथ प्रभु लाकड़ी वधार।

ओगणी अनंत भक्तन तरिया ते प्रभु आगें,

ओ गणेश ओ गणेश तुम्हारो आधार।।


वीश दुवा तणो गीत, बांधियो संसार विषे,

वीसरूं ना घड़ी एक तुहारो विशास।

बीसवासें नमो नमो दया करो विठलाजी,

दीन रा दयाल अर्ज करे ईशरदास।।


टंकणकर्ता :-  दिलीपसिंह चारण









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