सांवरा

सुर छेड़े जद सांवरा

बागां छाय बहार, डाल डाल अलि डोलता।

पनघट चले पणिहार, सुर छेड़े जद सांवरा।।

करे गीत गुंजार, डाल डाल अलि डोल नै ।

बागां छाय बहार, सुर छेड़े जद सांवरा ।।

गोपी गावत गीत, उछेर उछेर खोपियां।

पथ पथ पनपे प्रीत, सुर छेड़े जद सांवरा।।

कोकिल करे किलोळ, मुदित मृगला कूदता ।

गायां बछड़ा टोळ, सुर छेड़े जद सांवरा ।।


°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

नटवर जातो नट्ट 

लुक लुक जाऊं लाजती, उदित होत जद भाण।

जोये पनघट जावती, पकड़त नटवर पाण।।

छल कर छलियो छेड़तो, घेर फोड़तो घट्ट।

देवती ओलबा जदे , नटवर जातो नट्ट।।

खाटो माखण खोसतो, बुकियों पकड़े बट्ट।

जद जद जसुदा झांपती, नटवर जातो नट्ट।।

कंकर  गुलेर  गेरतो, तुटती  गागर  तट्ट।

पकड़ कान जद पूछती, नटवर जातो नट्ट।।

सावली सुरत सोवणी, मेलत पग मट मट्ट।

बंसी बजा दे बोलती, नटवर जातो नट्ट ।।

देखतां लार दौड़तो, राधे राधे रट्ट।

नाचण रो जद कैवती, नटवर जातो नट्ट।।

गौ रस लूट'र गौखड़ां, गटकतो छाछ गट्ट। 

होत छती जद चोरियां, नटवर  जातो   नट्ट।।

लटक'न साख लुकावतो,वट झट चढनै पट्ट।

लाजती जदे मांगती, नटवर जातो नट्ट ।।

माखण नित नित ढोळ'नै, सिरक जावतो सट्ट।

पाण पकड़ मां पूछती, नटवर जातो नट्ट।।

तें की मटका तोड़ियां, पुठां पड़ेला लठ्ठ।

हेक बात नी  हांकरै, नटवर जातो नट्ट।।


°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

रमण कृष्ण तू रास 

व्याकुल मन वसंत रुत, नयन कबसे निरास।

अडिका मत अब आव रै, रमण कृष्ण तू रास।।

अब इक पल ना आवड़े, सांस सांस ने आस।

बंशी     बजातो  आव रै, रमण कृष्ण तू रास ।।

चित्त चंचल चकोर सो, पलकां दरसन प्यास।

आ पूनम रै चांद सम, रमण कृष्ण तू रास ।।

तान छेड़ हूं ताल दूं , पाण पकड़ आ पास।

मुरलिये स्वर फूंकदे, रमण  कृष्ण तू रास।।

कानन कुंजन कुंज में, कोमल हरियल घास।

घेर धेनु अब आव रै, रमण कृष्ण तू रास ।।

चौबिसों कला चंद्र सी,उर उपजाय उजास। 

अमिय कलस बण आव रै, रमण कृष्ण तू रास ।।

हे अलि! खिली कली कली, मत गूमा मधुमास।

उफ्णे   मकरंद    आव   रै, रमण कृष्ण तू रास ।।


°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

फिरै कठेह अहीर 

बैठो का पट ले वटे, तट जमना रै तीर।

का टोगड़िया टोलतो, फिरे कठेह अहीर।।

का गुलेल लै गैरतो, गोपी रो घट  नीर ।

का माखणियो चोरतो, फिरे कठेह अहीर।।

तान मुरलिये टैरतो,  घन घुमड़त घीर घीर।

सुदबुद सब री सोसतो, फिरै कठेह अहीर।।

साळ्यां दूहे छाळियां, खंड नख ठासे खीर।

फुँकफुँक पदमा पावसे, ग्यो इण नीत अहीर।।

मौजा ब्रज री मोकली, सोचे  सागर क्षीर।

पद्ममा पग्ग पलोटती, साह् रे सुतो अहीर ।।

गैळो काढे गाळियां, क्यूं सुणे धार धीर।

बांथ्यां आवण आउरो, फिरै कठेह अहीर।।

कष्ट भलां रा भांजियां, भलीज लीनी भीर।

म्हारे क्यूं नी आवियो, फिरे कठेह अहीर।।


°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

डेरा देयर डाल, लेतो लुकाय लूगड़ा।

बाला रा बंवाल, जमना तट ते जादवा।।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण


फूंक मार कर मुरलिये, सूर ने देतो सांस।

माधो  मेंदी  मांडतो, राधा  रमती  रास ।।

अंस कंस रो खावतो, लीला कर कर लक्ख।

भोली मैया गोपियां, मक्खन  दाबे  कक्ख।।

कोशिशां कंस की किती, पीताम्बर नाही पजम ।

गोकुल बस बरसो बरस, कान्ह किन्ह हासल हजम।।

किण विध किण नै कैवतो, हरदम हाल हियाह।

मायळो मरम  मालिकां, कैवां  किण नै  किंयाह ।।

हे हरि हे हरि रटत हूं, मुरलिय रि टेर हेर।

देर फेर काहे करत, कर मुझ तणीह मैर।।

 सांझ सवेरे सांवरा, ना भुलूं थारु नाम। 

चरण शरण हूं चावतो, ठाकुर थारै ठाम।।

मिळत उदधि उर गोमती, धज्ज फरहरे धाम।

पूगे कद वठे पांगळो, ठाकुर थारै ठाम ।।

दीनी  तेंही  देह, बंधन  कर्मों  बांधिया।

प्रार्थना करूं ऐह, मोक्ष आपजे माधवा।।

दीस्यो ना मन द्वैत, वत्स फस्सियो विस्वास में।

खावै बाड़ हि खेत,  कैथ   जावांह   केशवा।।

शब्द रा भाव सार, जाणूं ना कछु कैवणो।

तैंहूं  इ  पड़े   पार,  कांई  कहु  रै  केशवा।। 

चालै शकुनी चाल, पासा जबरा फेंकिया।

हमकै कवण हवाल, समझ नी आय सांवरा।।

ओर घरन में आग, भर भर कान लगावता।

कहां सकेंगे भाग, समय आयांह  सांवरा ।।

सोरो नी संसार, इत पग पग पर आथड़ा।

समय समय पर सार, शरणे राखे सांवरा।।

अभिनेता इक ईस हैं, सब उसके किरदार।

लीला उसकी लाख हैं, माया अपरमपार।।

सोरी  सोल  हजार  ही,  सोरा  राख्या   सैण ।

नारद किताइ खप लिया, करि नी किणिमें दैण।।

काबल्यत हति न कोय, रहमत तोही राखतो। 

मनरुचो देतो मोय ,  सुक्र करुँ कैम सांवरा!।।

पात्र या कुपात्र देख, भेद भव करंतो सदा।

है सिर्फ तुहीं हेक, सिरखो राख्यों सांवरा ।।

आत्म परम कदि आप, पुण्य कर कर न पावियो। 

पाप श्राप पछ्ताप, सम्मुख लाये सांवरा  ।।

पाणे कीना पाप, का पैली रा पुण्य हो।

सत जन्मा रा श्राप, शुन्य करो थें सावरां ।।

कंज नैन कजरारिये, गज्जरारिये गैसु।

बोल वैण बतरारिये, हे सांवरिये मैंसु ।।


केवट म्हारा सांवरा 

सकल संसार सार, जगताधार तुहीं बड़ो।

पुगाय नौका पार, केवट म्हारा सांवरा।।


हूं देखूं संसार, मुळकतो मझधार मा।

हलाय थूं पतवार, केवट म्हारा सांवरा ।।


कदई सागर शांत, कदेई उफणतो घणो।

मिल्यो थूं एकांत, केवट म्हारा सांवरा ।।


आ उभा मगरमच्छ,(पण)चालक थूंइ चतर बड़ो। 

बैगो निकलूं बच्च, सखरो केवट सांवरा ।।


टणका देखूं टापु, जीव देखुँ जग रा जबर।

उभाह साथे आपु, सफर सोरोह सांवरा।।


°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण








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