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Showing posts from June, 2019

लांगा चारण री कटारी गीत जात सफाखरू /सुपंखरो मेरामण जी जाडेजा राजकोट

"कट्टारीनु किर्तन " (सफाकरु गीत) ~~~~~~~~~~~ भली वेंडारी कट्टारी लागा अेतादी कळाका भाण संभारी कट्टारीमाहे होवाते संग्राम.। हेमजरी निशरी वन्नारी शात्रवाका हैया. अजा बीआ मागे थारी दोधारी ईनाम.।। पट्टी अट्टी आखरा की जम दट्टी कट्टी पार. ध्रुसटी शात्रवा हैये राखवा धरम.। बंबोळी रत्तंमा थकी.कंकोळीशी कट्टी बार. होळी रमी पादशारी नीशरी हरम.।। अषाढी बीजली जाणे उतरी शी अणी बेर. मणी हिराकणी जडी नथारे सम्राथ.। माळीअे हो मृगानेणी बेठी शत्रशाळी मांय. हेमरे जाळीअ करी शाहजादी हाथ.।। करी वात अखीयात अणी भात न थे काणी. जरी जाळीयामा तरी जोव जांख जांख.। शात्र वाका हैया बीच सोसरी करी ते जेसा. ईसरी नीसरी के ना तीसरीसी आँख।। कर्ता - महाराज मेरामणजी राजकोट पोस्ट - भगुभाईगीडा जसदन टाईपींग - भगुभाईगीडा जसदन (काठीदरबार)   " वोट्सप्प " @भगुभाईगीडा लोकडायरागृप जसदन@ जोडावा माटे मो.7567835462
मंडोवर नरेश नाहड़राव पड़िहार द्वारा गिरनार की तलहटी में जाखेड़ा गांव निवासी नरसिंह भाचलिया को सिंह-ढायक पदवी से नवाज कर प्रोलपात्र बनाकर मानसरोवर सम मोगड़ा जागीर बगसीस करने की गाथा लिखने का प्रयास । तन मन लागी प्यास,ताण कबाणां दौड़तां।  पूग्या पुष्कर पास, इंदा नृप आखेट नै।। खावे तावड़ खार, जेठ माह अति जोर तप। पुगा अरावल पार, प्यासा पाणी आस में ।। तिस्सा नाहड़ राव जी, मही मंडोवर भूप। फिरे थळ जळ जोवता, कठे न दीसै कूंप।। गौ खुर खीणी  खाड में, थो पाणी थोड़ोह। पाणी महिप झट पी गया, मलगु किय न मोड़ोह।। पेय महिप ज्यूं ही पियो, सुचंग होय शरीर। सरवर खुदांउ सांतरो, ठहरांऊ इत नीर।। खूद सरवर खुदाय, आयो नृप मजदूर ले। थो जैसो ही थाय, कठे न सिरके हेक कण।। ................ °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण जाखेड़ो गांव हो जठे , तलहट गढ गिरनार। भाचलियो नरसिंह भट, करतो नार शिकार ।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

मेरी हसरत पर तेरी मेहरबानी नहीं चाहिए ।

https://www.writersmood.com/2019/06/blog-post_48.html?m=1 मेरी हसरत पर तेरी मेहरबानी नहीं चाहिए, आरजू उलफत पे तेरी कुर्बानी नहीं चाहिए। हम ही अपने इश्क पे नाज कर लेंगें ऐ दिल, इस ताहिर को अब कोई दिवानी नहीं चाहिए। बिन तेरे जो झट डूब जाए सूर्ख साहिल पर, दरिया के मुसाफिर को वो कस्ति नहीं चाहिए। बीके जो नोटो में बटकर लड़े जो मजहब पर, मालिक इस मुल्क को वो बस्ती नहीं चाहिए। उजाड़ गुले- गुलशन विरान करे हशीं जहां को, मन बहलाने मौला ऐसी मस्ती नहीं चाहिए। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

इक बार भी नहीं पुछा कि कैसे हो? "दीप"

https://www.writersmood.com/2019/06/blog-post_14.html?m=1 अक्सर गुजरता हूं तेरी गलियों से, हाल चाल पूछता हूं मैं कलियों से, कोई करता नहीं मुझसे जिक्र तेरा, ले लेता हूं तेरी खबर तितलियों से।। काफी अर्से बाद मिले हम बीच राहें, धड़कने बढी दिल भरने लगा आहें, तुने हटा ली मेरी डटी तो हटी ही नही, बस इत्तफाक से यूं मिल गयी निगाहें।। सोचता होगा? यूं देखोगे कब तलक, इतनी क्यों हशीं लगती है मेरी झलक, मुकम्मल वक्त जो था वो बीत गया, कब तलक तरसती रहेगी तेरी पलक।। अब तो बहुत कम ऐसे मोड़ आते, जहां कभी हम तुम टकरा ही जाते, जा बस गये तुम किस गैर दुनिया में, आज भी उस गली में अलि मंडराते। झरोखे से झांकती ना थी मोटर जीप, निहारती इक टक स्वाति बूंद ज्यों सीप, निगाहें टिकी रहती थी ओझल होने तक, आज इक बार भी न पूछा कि कैसे हो? "दीप" । °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण