बादली अर सावण
बालक बिलखे बादली , घुमती घिरती आय ।
रहगी रुखी सुखी धरा , मेट मेघला लाय ।।
मेट मेघला लाय , झिर मिर झरंतो जाए।
खेत खडा लहराय , किसान जोये हरसाए ।।
गीत मोरिया गाय ,घटावां बजाय ढोलक ।
नाडियां भरिय नीर , झबलक झिलसे बालक ।।
सावण आयो हे सखी , हिंडवां हिय ललचाय ।
नैणा बिछाय पथ तकूं , कंत घरां कद आय ।।
कंत घरां कद आय ,बाट जोय जोय थाकिय ।
हिय बिलखतोय जाय , आंसुडा नैणइ नाखिय ।।
पिहर लागत पराय , पिया बिन सुनो जीवन।
घररर घन घुरजाय , कंत बिन कैसो सावन ।।
••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
उमडी घुमडी घनघोर घटा हडडाट घणोय मचाय रही ।
घुमती घिरती चहुओर घटा झुमती बरखा बरसाय रही ।
चपला चमकी छलकी डरगी सजनी अँसुवां ढलकाय रही ।
मधरी महकी बहकी सिणगार धरा खुसबू बिखराय रही ।
••••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
Comments
Post a Comment