सांवरा
झांकु स्याम चढ झरोखा , दिसा द्वारिका देख ।
बंसी मघुर आय बजा , काढ हिये री मेख ।।
म्हुं मीरा मरुदेस री , जगी प्रीत जदुराज ।
चलूं द्वारिका आज , सामो आजै सांवरा।।
•••••••••••••••••••••••••• दीप चारण
वीणा बजाय बिरहणी , गीत बिरह रा गाय ।
नाह नरायण आय सुण , आतुर अधर बुलाय ।।
वीणा बजाय बिरहणी , तणणनं करत तार ।
घन स्याम मन भिंजोय दे , मीरा गाय मलार ।।
मीरा मन बन मोर बन, झुमती नचती जोर ।
आय घुमंत घिरंत अति ,स्याम घटा घनघोर ।।
वीणा बजाय बिरहणी , गीत बिरह रा गाय ।
मीरा कंठ राग मधुर , सुणे सांवरा आय ।।
। किरीट सवैया ।
मोहन साध सुरं बजती मुरली मधुरं मन कानन होयन ।
राग सुनी मधरी मधरी चल गोपि निहारि लगी मन मोहन ।
माधव लोचन लाल लगे मद मादक मोहक नाचत गोपन ।
मोर बनी रमती रमिया कर थामत आपु बनी मधुसूदन ।
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
अरसात सवैया
बातइ मानव मानत गोकुल ग्वाल नटीवर माधव राज की ।
साम सदा इक बात कहे मत मुरत पूजत वासव राज की ।
भोग न देवत देवन को अब कोप करी मघवा घन राज की ।
गाज पङी बरखा बरसी गिरि धार लियो जय हो जदुराज की ।
••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
सुपंखरो
चढी ऐराऊत देवराज घोर मेघ घेर आयो ।
तपे ब्रज कै तणो तड़ीत छोड़ तोप ।।
हर ओर हाहाकार हरेक देखे हरि को ।
डबो डब ब्रज डूबे करी सक्र कोप ।। [1]
गाजे मेघ तेग वेग गुड़ायकै घणा गड़ा ।
खला खल खाला बाजै थर्र कंपे हाङ ।
आय हरि हांसतो पहाड़ उपाड़ आंगली ।
ताड़ ताड़ कियो दंभ फंद भंज फाड़ ।। [ 2]
••••••••••••••••••••••दीप चारण
झमाल
मुख माखण चुपड़योङो , जसुदा पकड़त कान ।
म्हैं नाहि माखण खायो , मावड़ी बात मान ।।
मावड़ी बात मान , खायगो भाउङो ।
काट भाउ रा कान , फांसयो कानड़ो ।।
रमावै नाहि साथ , चिड़ावै हैं मनां ।
मैया मेरी मात , मोल लाया तनां ।।
सदा भिड़ावै सखा नै , राजा बणतो आप ।
चुतर कैवै कर चौरी , अजरो दाउ अनाफ ।।
अजरो दाउ अनाफ , मटका फुड़ावतो ।
करतो माखण साफ , न मनां चखावतो ।।
चौपड़ ठायो चौर , माखण चुराणियो ।
भाउ तेरो भौर , मोल मम आणियो ।।
••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
माधव छवि मन मोहनी , मन हर मो मन मोह ।
तार लइ तारणहारा , तुतला (दीप)ध्यावै तोह ।।
••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
जमना तट पनघट सुनो , माधा मारग मोङ ।
चुगली न खाय गोपियां , माखण मटका फोङ ।।
मथुरा मत बसे माधा , माखण चाखण आय ।
चुगली न करे गोपियां , भावै जितरो खाय ।।
साम बिना पनघट सुनो , पटकै घट पणिहार ।
छाछ लेय'र छोहरियां , अडिकै गोकुल द्वार ।।
••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
जन हरण घनाक्षरी
नटवर नटखट पनघट पर धर पग मम कलइ नह पकड़ किसना ।
पनघट पर घट भरन चलत पणिहरि कहत घट मत पटक किसना ।
घट पटक पटक कर मम कर नह पकड़ जल न हर लज रख किसना ।
मम भँमर नयन अटक जकड़इ बिच नटखट नटवर कमल नयना ।
•••••••••••••••••••••••••दीप चारण
मनहरण घनाक्षरी
घुंघराले काले काले , लाम तेरे नंद लाल ,
लोचन विशाल लाल , चाल मराल सम ।
सीस मोर पंख सोहे,धनंख सी तोरी भोहें ,
मैया उभी रूप जोहे , चांद को चकोर सम ।
सांवरी सलौनी छवि , मुख पर तेज रवि ,
छंद तोरा गावै कवि , नदी के निनांद सम ।
मधुर बंशी बजावै , बन में धेनू चरावै ,
छवि कवि दीप गावै , पण शब्द ग्यान कम। [1]
मटका फोड़ लैयगौ , मन मोहन माखन ,
पकड़ रही गोपियां , पुछत सवाल हैं ।
भागे आगे नंदलाल , पिछु पिछु ग्वाल बाल,
गोपिया गुस्सै उं लाल , मुलकै गोपाल हैं ।
कान्हा को पकड़ कान , जसुदा के पास लाये ,
कुड़ी बोले ऐ गोपियां , फांसे तोरो लाल हैं ।
म्हुं तो चराऊं गईंया , सजा नाहि दिजौ मैंया ,
चोर तो हैं दाऊ भैंया , कुड़ौ ओ बंवाल है । [2]
जन्मियो आप जेल में , रमियो सखा भेल में ,
नाथयो नाग खेल में , रचे लीला नित हैं ।
सब देवन में न्यारौ , मैया नंद को दुलारौ ,
ब्रज गोपियां को प्यारौ,राधा की तुं प्रीत हैं ।
बंसी मधुर बजावै , नाता प्रीत रा निभावै ,
राग सब ने रिझावै , गावै मीठा गीत हैं ।
गुण जै थारा गावै , शरण जो थारी आवै ,
पल माय मुक्ति पावैं , साचो थुं ही मीत हैं । [3]
नाचै कुदे घर नंद ,छङा बजे मंद मंद ,
मुलकै बाल मुकुंद , ब्रज मा आनंद हैं ।
सांभल अधर स्पंद , पट झट खोल बंद ,
कर उर मा आनंद , तुहीं रघुनंद है ।
जाणे तुंही जुद्ध द्वंद , हारे तोसे जरासंध ,
पुष्प की तुंही सुगंध , काव्य तुं प्रबंध हैं ।
मैं बालक बुद्धि मंद , माधा काट मेरो फंद,
सब्द ग्यान दे जै चंद , रचे दीप छंद हैं । [4]
•••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
•••••••••••••••••••••दीप चारण कृत
म्हुं सुदामा कलजुग रो , न पुगूं थांरै द्वार ।
माधा मेट दरिद्रता , कवि रो करो उद्धार ।।
हरि एक हजार नाम , हरि हरदम कष्ट हरतो ।
सुबह इ हरि हरि साम , जपतो जाजै जीवङा ।।
बरस ए जाय बीतता , बिरह बधे ओ बोत ।
प्यासी जुगॉ सुँ प्रीत री, हरि रँग कद हरि होत ।।
••••••••••••••दीप चारण
पनपायो तो पाल , पूज्य मम पालनहारा ।
लक्ष्मी बिसरे लाल , समझाय दिजै सांवरा ।।
•••••••••••••••••••••••••दीप चारण
कमला भेजौ कंत ,भोलावण देय'र भली ।
मौज करे सब संत , भूंडो कवि दीप भुगते ।।
•••••••••••••••••••••••••दीप चारण
हालरियो हुलरावतो , हरदम लुकाउँ हाल ।
माखण टाबर मांगता , गिटाउँ कठैउँ गोपाल ।।
•••••••••••••••••••••••••दीप चारण
गावुँ हुँ मैं बिन ग्यान गुण , खाजै मत ना खार ।
स्याम म्हारी पुकार सुण , उलझना उं उबार ।।
श्याम श्याम जपु नाम , नमां रातदिन नाम ले ।
किजौ पूर्ण हर काम , सब्द दीप रा सांभले ।।
तरणी श्यामा तार, डब डब भव उदधि डुबती ।
परचो दे कर पार , सब्द दीप रा सांभले ।।
छटा आ छंट छंट , अरक लुकावै आकरो ।
बधे जुड़ बंट बंट , घन स्याम निरालो घणो ।।
प्रीत तणी आ प्यास , बिरहा रह रह वापरे ।
ना कर दीप निरास ,साँझ ढले आ सांवरा ।।
मुरत मीरा समाय , स हय ईसरा तारियो ।
समाय सकुटुम मोय , मौत खळॉ मत मारजे ।।
स्यामो आसी साय ,नितरो धरे रूप नवो ।
पात्सा पड़सी पाय ,
दैख्तो जाजै दीपड़ा ।।
•••••••दीप चारण
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