फिरे कठैह अहीर
फिरै कठेह अहीर
बैठो का पट ले वटे, तट जमना रै तीर।
का टोगड़िया टोलतो, फिरे कठेह अहीर।।
का गुलेल लै गैरतो, गोपी रो घट नीर ।
का माखणियो चोरतो, फिरे कठेह अहीर।।
तान मुरलिये टैरतो, घन घुमड़त घीर घीर।
सुदबुद सब री सोसतो, फिरै कठेह अहीर।।
साळ्यां दूहे छाळियां, खंड नख ठासे खीर।
फुँकफुँक पदमा पावसे, ग्यो इण नीत अहीर।।
मौजा ब्रज री मोकली, सोचे सागर क्षीर।
पद्ममा पग्ग पलोटती, साह् रे सुतो अहीर ।।
गैळो काढे गाळियां, क्यूं सुणे धार धीर।
बांथ्यां आवण आउरो, फिरै कठेह अहीर।।
कष्ट भलां रा भांजियां, भलीज लीनी भीर।
म्हारे क्यूं नी आवियो, फिरे कठेह अहीर।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
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