कृष्ण दास जी छीपा कृत करूण अस्टक
*कृष्णदास छीपा कृत करूणाष्टक*
दोहा
भव भव बंधन भंजिया कृष्ण सुधारत काज !
करूणा अष्टक कहत हुं, मानीजो महाराज !!
🌹छन्द जात ईन्दव🌹
मृग बंद को फंद मुकुन्द कटयो दुख द्वन्द हटयो विरदावन में ।
ग्रही ग्राह प्रचंड समंद विचाळ गजेंदर की टेर सुनी छिन में .
धर उपर घंट गयंद धरयो खग ईण्ड उदार कियो रण में .
रघु नन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चीत धार रहो ऊन में !!१!!
भयभीत बनी अति दुत भयंकर सीत हरि ज्यों अनीतन में ।
ललकार हुंकार ही मारि दशानन प्रान लियो अपना पन में ।
दशकंध के भ्रात अनाथ के नाथ सनाथ कियो गढ़ लंकन में ।
रघुनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चीत धारि रहो ऊन में !!२!!
पट खेंचत नार पुकार करि अरी भाव भरयो दुर्योधन में .
हरि ,हे हरि ,हो हरि ,हाय हरि तुं क्यों न मरि जननी तन में .
तिण बेर करी नह देर लगी हरि अम्बर शीर ओढावन में ।
रघुनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चीत धारि रहो ऊन में !!३!!
मतिमन्द सुरेन्दर अन्ध भयो गयो गौतम घर व्याभिचारन में ।
नीज नार का लार विकार करी रिषी श्राप उण कारन में ।
रघराय फटाय मिटाय शिला तन पार करी पद छारन में ।
रघनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चीत धार रहो उन में !!४!!
जल पुर बहे नदी नीर तठे श्रीराम बैठे उन नावन में ।
रघुराय के पांय धोवाय दिये नावि पार भये हरि के गुन में ।
कळु कार कठोर कठोर महाक्रम छुटी गये प्रभु पावन में ।
रघुनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चीत धारि रहो उन में !!५!!
ध्रुव बाल किशोर क्रम छोड़ सबे सुख राघव काज रहयो रन में
लघु वेश में नाम प्रवेश लियो मुलतान रहयो दुख के दिन में
महाराज निवाज के राज दियो थर थाप कियो सुख के छण में
रघुनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चीत धारि रहो उन में !!६!!
करि कोप अरोप अलोप करी ब्रज मेघ विचार कियो मन में
घन गाज आवाज अग्राज घटा धर व्योम फटा विकटावन में
नर नारी पुकार तें धार लियो गिरी बाल गोपाल ऊबारन में
रघुनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चीत धारि रहो उन में !!७!!
किरतार ऊद्धार अपार करे नर नारी तिरे हरी के गुन में
ग्रीध व्याघ्र असिद्ध को सिद्ध करे आबाद रयो कुंड किन ही किन में
कृष्णा तृष्णा सब दुर करो रसना ऊच्चरो छिन ही छिन में
रघुनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चीत धारि रहो उन में !!८!!
दोहा
करूणाष्टक जो कहे मगन रहे मन मांहि !
भगत वत्सल भगवंत हैं बुडत पकड़े बांहिं !!१!!
नर नारी नीत नेम सुं प्रात समे करे पाठ !!
कष्ट टळे कृष्ण मिळे थीर मन रहे सुख थाट !!२!!
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