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फिरे कठैह अहीर

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 फिरै कठेह अहीर बैठो का पट ले वटे, तट जमना रै तीर। का टोगड़िया टोलतो, फिरे कठेह अहीर।। का गुलेल लै गैरतो, गोपी रो घट  नीर । का माखणियो चोरतो, फिरे कठेह अहीर।। तान मुरलिये टैरतो,  घन घुमड़त घीर घीर। सुदबुद सब री सोसतो, फिरै कठेह अहीर।। साळ्यां दूहे छाळियां, खंड नख ठासे खीर। फुँकफुँक पदमा पावसे, ग्यो इण नीत अहीर।। मौजा ब्रज री मोकली, सोचे  सागर क्षीर। पद्ममा पग्ग पलोटती, साह् रे सुतो अहीर ।। गैळो काढे गाळियां, क्यूं सुणे धार धीर। बांथ्यां आवण आउरो, फिरै कठेह अहीर।। कष्ट भलां रा भांजियां, भलीज लीनी भीर। म्हारे क्यूं नी आवियो, फिरे कठेह अहीर।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

कृष्ण दास जी छीपा कृत करूण अस्टक

 *कृष्णदास छीपा कृत करूणाष्टक*       दोहा भव भव बंधन भंजिया कृष्ण  सुधारत काज ! करूणा अष्टक कहत हुं,  मानीजो महाराज !! 🌹छन्द जात ईन्दव🌹 मृग बंद को फंद मुकुन्द कटयो दुख द्वन्द हटयो विरदावन में । ग्रही ग्राह प्रचंड समंद विचाळ गजेंदर की टेर  सुनी छिन में . धर उपर घंट गयंद धरयो खग ईण्ड उदार कियो रण में . रघु नन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चीत धार रहो ऊन में !!१!! भयभीत बनी अति दुत भयंकर सीत हरि ज्यों अनीतन में । ललकार हुंकार ही मारि दशानन प्रान लियो अपना पन में । दशकंध के भ्रात अनाथ के  नाथ सनाथ कियो गढ़ लंकन में । रघुनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चीत धारि रहो ऊन में !!२!! पट खेंचत नार पुकार करि अरी भाव भरयो दुर्योधन में . हरि ,हे हरि ,हो हरि ,हाय हरि तुं क्यों न मरि जननी तन में . तिण बेर करी नह देर लगी  हरि अम्बर शीर ओढावन में । रघुनन्द गोविन्द आनन्द घणा कृष्णा चीत धारि रहो ऊन में !!३!! मतिमन्द सुरेन्दर अन्ध भयो गयो गौतम घर व्याभिचारन में । नीज नार का लार विकार करी रिषी श्राप उण कारन में । रघराय फटाय मिटाय शिला तन पार करी पद छारन में ...