संस्मरण :- गांव की सुबह

संस्मरण :- गांव की सुबह

मैं बचपन से ही शहर में रहता हूं। बचपन में ग्रीष्मकालीन अवकाश के दिनों में गांव चला जाता था। मेरा गांव बैह चारणान जोधपुर से करीब 65-70 कि. मी दूर ओसिया तहसील में स्थित हैं। जो चारों तरफ रेतीले धोरों और पडाड़ से घिरा हैं खेतासर गांव पार करके गांव की सीमा में प्रवेश करते समय सड़क मार्ग रातड़ी भाखर हैं इसकी सीध में बरोबर आने पर गांव दिखाई देने लगता हैं गांव के पीपल वृक्ष घर आदि दिखने लगतें हैं। अंधाधुंध खनन से रातड़ी भाकर प्राय लुप्त सा होने लगा हैं। भाखर से सटा लंबा और ऊंचा विशाल टीला दूर बैह नाडी से आगे  बहुत दूर तक जाता हैं अर्द्ध चंद्राकार आकार बनाता हुआ, इन्हीं धोरों के पीछे संध्या काल में सूर्य अस्त होता हैं। उस  वैला में लाली युक्त नजारा अत्यधिक मनमोहक होता हैं। इन्हीं धोरों के पीछे शायद चिराई गांव का एक टावर दिखाई देता हैं।
सड़क के रास्ते गांव के भीतर की तरफ प्रवेश करने पर करणी माता का मंदिर और ओरण भूमि प्रारम्भ हो जाती हैं। मंदिर परिसर और ओरण में मनीष जी माड़साब और करणी युथ क्लब की कठिन मेहनत से वृक्षारोपण व उनकी देखरेख से गांव का प्राकृतिक सौन्दर्य में काफी निखार आया हैं। दाहिने हाथ की कुछ ही दूरी पर एक धड़ी हैं। मंदिर से आगे बढते ही उच्च प्राथमिक विद्यालय और सार्वजनिक ट्युवेल हैं जो गांव की जलापूर्ति करता हैं। प्राचीन काल में गांव की जलापूर्ति गांव के बाहर की तरफ प्राचीन ऐतिहासिक कुआ हैं जो केई वर्षों से बंद हैं। पुराने होद पानी की खेलिया  छतरी बनी हुई हैं पास ही प्राचीन शिलालेख हैं।
गांव के बीचोंबीच गवाड़ हैं यहां विशाल पीपल का वृक्ष हैं जिसके चारों और विशाल चोतरा हैं। पास ही ठाकुर जी का और हनुमान जी का मंदिर हैं। यहां से कई गलियां कोटड़ियों की तरफ जाती हैं। कोटड़ियो के आस पास सिंढायच चारणों के रावले स्थित हैं। गांव के बायें हाथ की तरफ बाला (बरसाती नदी ) गांव के पूर्व दिशा में स्थित पहाड़ों का पानी इसी नदी से बहकर आगे निकल जाता हैं पूर्व दिशा में स्थित पहाड़ पर प्राचीन हिंगलाज माता का मंदिर हैं मंदिर से आगे बिकमकोर गांव की कांकड़ हैं।बिकमकोर बीकानेर महाराजा गंगासिंह का ससुराल था। ऐसा सुना था। देवी के इस मंदिर का जिर्णोद्धार भी उन्होंने करवाया था। यह मंदिर उंचाई पर स्थित होने के कारण यहां से गांव का नजारा अति मनमोहक लगता हैं।
इसी मंदिर के पास एक छोटी सी गुफा थी। जिसमें गांव के ही चारण संत ने तप किया था। वृद्धावस्था में गांव के समीप कुटिया में रहते थे। कुछ वर्षों पहले वे देवलोक हो गये।

गर्मियों की छुट्टियों में जब गांव जाता तो सवेरे सवेरे उठते ही चाय का गिलास लेकर घर के पीछे वाली फाटक के पास बैठ जाता था। वही बैठे बैठे चाय के सबड़क सबड़क सबड़के लेता और पक्षी की मधुर आवाजें सुनता। घर के पीछे की तरफ स्कुल के हथ्थे और घर के बीच की तरफ एक खेजड़ी थी उसके नीचे बहुत से पक्षी चुग्गा चुगते। उनमें चिड़िया, कबुतर, तीतर मोर आदि पक्षी कलरव करते विभिन्न आवाजें निकलते। मोर अपने पंख फैलाकर पंखों के फड़फड़ाट से दूसरे पक्षियों को डराता और उन्हें दूर करके खूद चुग्गा चुगता हुआ बादलों को देख कभी नृत्य करता तो कभी विभिन्न करतब करता रहता। मैं घंटों तक उन पक्षियों की मधुर आवाज सुनता और उनका कलरव देखता रहता था।ये दृश्य मन को परम शांति और अलौकिक आनंद देते। इस तरह की अनुभूति दार्शनिक अरविंदो की सप्तानुभूति के समान हैं जिसका पूर्ण रूप से वर्णन करना मेरे लिए तो संम्भव नहीं हैं।
सुबह सुबह अक्सर गांव में मेरी इसी तरह दिन की शुरुआत होती थी।

उन दिनों एक मोबाईल से मैंने उन पक्षियों के कुछ विडियो बनाये थे जो युट्यूब पर डाले थे। पर फोन ऐसा ही था की 41 सेंकेंड की ही रिकार्डिंग होती थी।

https://youtu.be/8_qX1ZHULq8

https://youtu.be/7BY2wYTMQBM

https://youtu.be/EiPTeNtw30I

https://youtu.be/qixRRI7O9lY

https://youtu.be/DQ8Rr9jWez0

https://youtu.be/_FlP11mVTyQ

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