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Showing posts from January, 2020

संस्मरण :- तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा

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भूली बिसरी यादें                  संस्मरण              शीषर्क :- तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा              लेखक :- दिलीपसिंह (दीप चारण) बात 90 के दशक की हैं, उन दिनों टेलिविज़न किसी किसी के घर पर ही हुआ करता था। ब्लेक एंड वाईट स्क्रीन के टीवी होते थे अमुमम, कलर टीवी तो कुछेक अमीर वर्गीय तबके के घरों में होते थे। मध्यम वर्गीय टेलिविज़न युक्त घरों में तो सिर्फ दुरदर्शन चैनल ही एकमात्र विकल्प होता था।  मैं उन दिनों पांचवी  कक्षा का छात्र था बचपन में इतवार का दिन तो पड़ोस के सहपाठियों के घर पर ही बीतता था। रंगोली नामक गीतों का प्रोगाम तो चूक ही जाता था। 9 बजे से पहले चाय नास्ता करने के बाद मैं एक बाल मित्र के घर चला जाता था। 9 बजे श्री कृष्णा, केप्टन व्योम, शक्तिमान इत्यादि धारावाहिक देखकर एक डेढ बजे घर आता, नहाना खाना आदि अत्यावश्यक काज निपटाने के बाद करीब चार बजे पुनः बाल मित्र के घर दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाली साप्ताहिक हिंदी फिचर फिल्म देखने के बाद स्व गृहप्रव...

हमारा बचपन हमारे खेल

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शीर्षक :- हमारा बचपन हमारे खेल लेखक :- दिलीपसिंह (दीप चारण) मनुष्य जीवन  मनोविज्ञान के अनुसार कई अवस्थाओं से गुजरता हैं। परन्तु सामान्यतः हम चार अवस्थाऐं मानते हैं। 1.बचपन 2. किशोरावस्था 3.युवावस्था 4. प्रौढावस्था बचपन का दौर हर किसी के लिए जीवन का स्वर्णीम दौर होता हैं, इसके बीत जाने के बाद कोई भी उस दौर को नहीं भूलता। मौज-मस्ती और आनंद से भरपूर कोई चाह कर भी उसमें नहीं लौट सकता। गजलों में भी गाया गया हैं कि "ये दौलत भी ले लो, ये शौहरत भी ले लो, मगर मुझको लौटा दो। वो बचपन का सावन, वो कागज की कस्ती, वो बारिश का पानी। .......... हालांकि हमारे पास टीवी विडियो गेम, हेंड विडियो गेम, इलेक्ट्रॉनिक खिलोने नहीं हुआ करते थे। फिर भी हमारा बचपन कुछ अभावों के बावजूद भी भावों से तरबतर था। हमारे पास तो कई छुपाये हुवै खजाने होते थे जिनमें, खाली अनुपयोगी माचीस की छापें, कंचे, फिल्मी फोटू, गत्ते के लूढो सांप सीढी, व्यापार, खराब रेडियो के चुंबक, पत्थर के गडडे, इत्यादि। इसके अलावा कैई इंडोर आऊटडोर खेल हम खेलते थे। गांवों में ग्रीष्मकालीन अवकाश के दिनों में भरी दोपहरी पीपल के चोत...