राजल बाई रा छंद

राजल बाई रा छंद
 कवि पृथ्वीराज राठौड़ (बीकानेर युवराज ) कृत

सारा सगतियां सरे , राजल थांरो राज ।
पीथल करे प्रार्थना , राजबाई महाराज ।।

राजल राजल रटता. पीथल करे पुकार ।
विखमी पुल आ वरणी , वेग कराओ वार ।।

तु चौराडी चारणी , हुं क्षत्री राठौड ।
नवरोजे नारी चढे , कुल ने लागै कोड ।।

गजराज धायो गोविंद ,द्रोपद जदुराज ।
हुं तनां धावां हमे , राजबाई महाराज ।।

धेनां छोडी धावती , वाडे वाछडियाह ।
उदाई डग आछटे , चीला डग चढियाह ।।

आयो बीकाणो आगरो , पीथल ना पायोह ।
वले पीयाणो वहंता , दिल्ली दिस धायोह ।।

केथ अकबर रो केलपुर , केथ चोराडो देस ।
आई आवो उंतावला , सुण पीथल संदेस ।।

नवरात्री मेले निरख , निरखी सब नरीह ।
चंपा कंवरी केथ चले , पिथे पूकारीह ।।

पग सामटे पग डहे ,वाहण विकरालीह ।
भटियाणी भेला हुआ , राजल रखवालीह ।।

राजबाई रथ मो रमे , भमे शाही गरम ।
भमे अकबर रा भोगना , नम नम होवे नरम ।।

अकबर छोडी उण दिन , नवरोजे री नीत ।
राजबाई रै सरणे , पीथल रहे नचीत ।।

हल चल प्रथ्वी पर होवे , जल थल अथल जंग ।
पीथल री सुण प्रार्थना , राजबाई जबरंग ।।



संकलन दिलीपसिंह चारण बैह चारणान

उठेस राजल भीर अम्बे, साद आवो समरी.....

जबरंग झाड़ी फिरत जन्दर, करत डक्कर केहरी।
जम चले अधर घणा चक्कर, खपर भूचर खेचरी।
ऊथ नाह ऊच्छब होवे किकर, भूत जोतों भ्रमरी।
उठेस राजल भीर अम्बे, साद आवो सम्मरी, मां साद आवो सम्मरी।।१।।
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भिड़ियन्त भैंसा करत भारत, भूट भचकत भूचरी।
पोढिया ओहँग सोहंग प्राणी, ऊचक आवे ऊपरी।
भिड़ियन्त जावों कठे भांजे, भ्रिख साखो वनरी।
उठेस राजल भीर अम्बे.....।।२।।
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सरवर नदी मो कोक समे, नावण जावों नीर मां।
जल मझ्झ ऊँडे पैसतों, समदं मोटी सीर मां।
जो लार मछीया जेथ जाड़ी, मुख फाड़े मगरी।
उठेस राजल भीर अम्बे.....।।३।।
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वाबलो बाजत वैत विरमल, देत हलचल डमरी।
केह-केह भाखर कंकर पत्थर, दिग ऊपर डूंगरी।
पग पाव पाणी कुएं पिणगट, किकर संकट तूं हरी।
उठेस राजल भीर अम्बे.....।।४।।
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ज्वालामुखी ज्यौं लौह झालां, चलत आँधि बावली।
पटकँत ओला पडै़ पावस, विकट कड़के बीजली।
हेमाल री जल कर हीफों, डोल जावत डमरी।
उठेस राजल भीर अम्बे.....।।५।।
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बालिग हड़क्यो करत बर-बर, दहित चलकर डाकणी।
चूड़ेल कामण मूठ चोटों, सोचके रथ साखणी।
वैताल विपलो बतलातों, भोज भय ऊपर भ्रमरी।
उठेस राजल भीर अम्बे.....।।६।।
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कबहक ऊलट वैत कलगूल, हाक चहु दिश हँकली।
वीर दमगल धराधल वल, मगल झालो में मिली।
राजल ऊपर तुझ राखो, दुश्मण टालो भय डरी।
उठेस राजल भीर अम्बे.....।।७।।
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वाराह घाटे कोक वेला, आंण वेरी आथड़े।
हकबक आरण मचै हैला, खाग तेंगा खड़बड़ै।
दुश्मन घेरा पारवती देउ, तैथ आयां तमरी।
उठेस राजल भीर अम्बे.....।।८।।
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ऊतराद पँथी होय ऐ कसुर, जुथा गुंजे जँगरी।
जुद्ध में वरण करण जोधो, आण अप्सर ऊतरी।
कड़कड़ा संकट जाण कब वक, झड़प लागे जमरी।
उठेस राजल भीर अम्बे.....।।९।।
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दरबार मेहलो दरीखाँना, थाट पाटों तेथिये।
मद् गले मोटो सांमो मिलियो, जोर हुकल जोथिये।
भूलँत हूँ तूँ रहे भेली, गत तो कने गमरी।
उठेस राजल भीर अम्बे...।।१०।।
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खिजमत ब्याने हूरमखाने, राय रौने रोकले।
आलम हजारो विच लायो, मीना बाजारो मोकले।
अवस बोझा आवसी ऊथ, नवरोजो न्रमरी।
उठेस राजल भीर अम्बे...।।११।।
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प्रदेश देशो अकल पँथां, वाट घाटे वहंतां।
जुटत भेख भूत जबर, रात वन में रवंतां।
थर रहे काया माग थाके, करे डक्कर केहरी।
उठेस राजल भीर अम्बे...।।१२।।
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शाही सोनारे करी संपती, मैली कपटी मूंदड़ीं।
भूली ठकराणी भटियाणी, चोर रथ में यूँ चड़ी।
अम्ब खास जावे सरप आवे, ऊसर धावे अमरी।
उठेस राजल भीर अम्बे, साद आवो सम्मरी, मां साद आवो सम्मरी।।१३।।
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साभार- कवि श्री सामल दान शंकर दान जी मेहड़ु गांव सुहागी बाड़मेर के निजी संग्रहालय से
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टंकण एंव प्रेषक-संदीप मीसण
मु. पो. गवारड़ी मेड़ता सिटी
(नागौर)

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