Posts

Showing posts from August, 2017

आदर्श वर्दीधारी

Image
आदर्श वर्दीधारी  दम्पती राम देवरे, देव  दरश  को  जाय।  पास नह यंत्र फोनड़ो,बैरि भीड़ बिछड़ाय।।  बिछड़ियां ने मिलाविया, करतां रात्री गस्त।  मुकनजी मोटा मानवी, करता ड्यूटी मस्त।।  देख बिलखती नार ने, रूंदन कारण जान ।  खामंद दियो खोज ने, मरद्द इ मुकनदान ।।  तुलसी ने हनुमान ,भेंटायो जिम राम सूं ।  मड़द्द इ मुकनदान, रूंदित धण ने नाह सूं।।  °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

बायण माता

विघ्न हर हर विनायका, सारदा दे सद्बुद्धि। दीप पर कृपा कीजिये, विद्या की हो वृद्धि ।। गणपति गुण हूं गावु हूं , सदाय करो सहाय। सिंवरूं निशदिन सारदे, पाण जोड़ लग पाय।। कुल कितरा ई तारिया, आप देय आशीष। आद शक्ति बाणेश्वरी, सदा नमे जग शीष।। शक्ति पूंज हे भगवती, अलौकिक लौं अखण्ड। ऊर्जावान इ आप सूं, खण्ड खण्ड ब्रह्मण्ड।। असुर वध करण अवतरी, सदाहि आदसगत्त। अबखि वेला उबारिया, भगवती घण भगत्त ।। गुहिल संग गिरनार सूं, चढ्या गढ चित्तौड़। बायण मात बिराजिया, ठेट जद सू उण ठौड़।। कुल सिंढायच सिसोदिया, कमधज अर गहलोत। आडा विपदा (में) आविया, बायण मात  बहोत।। गढ परबत गिरनार सूं , नरसिं भाचलिय संग। बस्याह आय मोगड़े, जय बायण जबरंग।। खळ इक बसतो बामसू,नामी बाणासूर । आतंकी हो आकरो, क्रोधी अर हो क्रूर।। मुल्क जीतियो मौकला, राजधानियां रोप। लोग पूजवा लागिया, खळ सू खाय खौफ।। भक्ति कर भूतनाथ री, वडा लिया वरदान। भूजा निज री भालकर, आयो घण अभिमान।। भक्ति सूं भूतनाथ ने, पायो पहरेदार। तब्ब मचायो तहलको , कर खळ अत्याचार।। शिव सूं खळ वरदान ले, लियाह त्रिलोक जीत। देव राज सब छोडिया...

14 - 15 वी सदी से भी प्राचीन की पूजा की एक पेटी का सिरवे (जैसाण) सें देशनोक तक का सफर।

Image
कहानी तेमड़ेराय मढिये में रखी लकड़ी की पेटी कब व कैसे पहुंची सिरवे से देशनोक। जो मैंने दंत कथाऐं सुनी उसी आधार पर अपने टूटे फूटे शब्दों में लिख रहा हूं त्रुटि हेतु क्षमा करें। ओम लिखा जो लकड़ी की पेटी देख रहे हैं ये लकड़ी की पेटी करणी माता जी की दादी सासू जी सिरवा गांव(जैसलमेर) से लेकर साठिका आये थे।  सिरवा में उनकी माता जी (करणी माता के दादी सासूजी की माता जी) इसमें आवड़ माता की पूजा की सामग्री रखती थी। फिर ये पेटी (बॉक्स) करंड साठिका से करणी माता अपने साथ ले गये।  वर्तमान में देशनोक तेमड़ेराय जी रे मढिये रखी हुई हैं। इस पेटी की भी लम्बी कहानी हैं। ये दोहा शायद करणी जी के दादा ससुर जी बोड़ जी बीठू का कहा हुआ हैं। मैं जाणंतां मेलियो, पनंग तणो सिर पांव। अणखुटीह खूटे नहीं,खूटी  बधे न आव।। जय हो तेमड़ेराय, जय हो करणी मात। घणी जुनी बात छै एकर बोड़ जी बीठू साठिके सूं पैदल तेमड़ेराय रै दर्शन खातर वहीर हुवा, मारग घणो पेचीदो हो अर माड़ धरा घणी धधकती नीर तो कोसो - कोसो नी सुझे।  मन में तेमड़ेराय रा दर्शन री आश लियां बाजी सा लपरक टपरक चालता चालता सिरवे ...