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Showing posts from November, 2016

माधव मेरे मीत

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मन्न मनोहर मोहके, मुस्कात तु टँग भींत। बैण दो बोल बन्तला, माधव मेरे मीत।। छंदा दोहा सोरठा, गा नी जाणू गीत। बैण दो बोल बन्तला, माधव मेरे मीत।। प्यासो पंछि पुकारतो, पाल मन्न में प्रीत। बैण दो बोल बन्तला, माधव मेरे मीत।। सुनकर दिल में दबा, मंद मंद संगीत । बैण दो बोल बन्तला, माधव मेरे मीत।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण मन वन कहुके मोर, विरह री घिरी बादली। समीर सम कर शौर, मंद मंद आ माधवा।। मम मन होय मसाण, मरण लगा अरमान अब। राधा री है आण, मोड़ो मत कर माधवा।। आवन तजू न आश, पथ तक तक नैन थकिया। बूझा अखियन प्यास, कर मत मोड़ो केशवा।। इर्द-गिर्द (हो) आभास, गर कण कण तुम बसे। दीप ने दिखा (दे) रास, मोड़ो मत कर माधवा।। चुग चुग आखर चंद, माला बणावण म्हुँ खपूं। जाणूं न कोय छंद, सब थूं जाणे सांवरा।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण

अन्य कवियों के गीत सपाखरो

गीत – सपाखरो देवां दातारां जूझारां चारां वेदां अवतारां दशां, धरां हरां ग्यारां रवि बारां चारां धांम।। सतियां जतियां सारां सुरां पुरां रिषेसरां, पीरां पैगम्बरां सिद्ध साधकां प्रणाम।।१।। नवां नाथां नवां ग्रहां नवसो नवाणुं नदी, नखत्रां नवेही लाखां भाखां नवे निद्ध।। पर्वतां आठ कुळां वसु आठ वंदां पाव, साठ आठ तिरथां समेतां आठ सिद्ध।।२।। सात वारां सातविसां नखत्रां सरग्गां सात, सप्त समुदरां सात पेयाळां तत सार।। पुरांणां अढारां भारां अढारां वनस्पति, ऊच्चरां आदिनाथ औमकार।।३।। पारस कल्पतरू चंद्र सुर दिगपाळ, पृथ्वी आकाश पाणी पावक पवन्न।। कैलाशवासी ईश कुबेर नमस्कार, ब्रहमा गणेश शेष खगेश विसन्न।।४।। अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका, पुरी द्वारामति सरसति गंगा पार।। गौदावरी जरी रेवा गौमती प्रयाग गया, कावेरी सरजु मही बद्री कैदार।।५।। सौमवल्ली चिन्तामणी रोहिणी सुभद्रा सोहां, सावित्री गायत्री गीता अरूधन्ती सीत।। कामधेनु श्री अदिती रंदल द्रौपदी कुन्ती, पार्वती सति तारा लोचन पवीत।।६।। चौरासी चारणी देवी छप्पन कोटि चामुण्डा, माता हिंगळाज आशापुरा महामाय।। अंबिका कालिका...

अपसरा इठोत्तरी दीप चारण कृत

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साद सांभले सारदा , शब्दां रो दो सार । मेट'र अवगुण मावड़ी ,धर जिह्वा रै धार ।। धर जिह्वा रै धार , कंठ सू निकले कविता । आखर देय अपार , सुरा री बहाय सरिता ।। तेज अरक रो अब्ब , भाल ऊपर यूं भरदे । सुधरे कारज सब्ब , विनती सांभल सारदे  ।। °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण अलबेली हे अपसरे गन्धर्वां सूं गवाय, ईठलाकर इठोत्तरी । मधुरं वाद्य बजाय, अलबेली हे अपसरे।।  1. नट बन करती नृत्य , गान सुन गन्धर्व का । नव योवना तुं नित्य , अलबेली हे अपसरे ।। 2. नाचती चहूं ओर, आंगण अम्बर आपरो । अदाऐं आठ पोर, अलबेली हे अपसरे।।  3. भर कर मन में मौज, नुपुर बजा लुक जावती। देव सब रया खोज, अलबेली हे अपसरे।।  4. सुमधुर सँगीत शौर , नृत्य संग जो सुने । होवत भाव विभोर , अलबेली हे अपसरे ।। 5. ता- ता-धीं-ना तान , तगड़ि तराना ताल हैं । गुनगुनात नच गान , अलबेली हे अपसरे ।। 6. छमम छम छम छमाक, बिछिया बजाय बाजणा । धरां पग धर धपाक, अलबेली हे अपसरे ।।  7. गन्धर्व गान सुन्न , थिरकत पद आनंद में । नच नीलकंठ धुन्न , अल...