सांवरिये रा सबद
कंस करे घण कोड , देय वसुदेव देवकी ।
फुटो गगन कन फोड़ ,काल आवसी कालियो ।।
ताला जन्मे तोड़ ,गयो नंद रे गामड़े ।
हुवै न थारी होड़ ,कलजुग माही कालिया ।।
देवकी रो इ दीकरो, वसुदेव रो इ वंश।
आठम कृष्णा आवियो, कूटण मामो कंश ।।
रावण रोल्यो लंक रो , रूड़े धनुधर राम।
कूटण मामे कंस ने, सजधज आयो श्याम।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
धेनां टोले धोलकी,बंशी मधुर बजाय ।
लुकै लुगड़ा लुकाय ,कालिन्दी तट कालियो ।।
कल कल करती कालिँदी ,मधरा कहुकै मोर ।
घिरे देख घन घोर ,कोड करे जद कालियो ।।
हालिया आय हिरणिया ,टणकी सुणते टेर ।
मांडै डग डग मेर ,कला ग़ज़ब री कालियो ।।
नाथण नकटो नाग ,दरे नाग नाखी दड़ी ।
झटक्के फणा झाग ,कालिँदी कूद कालियो ।।
नट बण नचियो नाच ,फण फुटरा तें फोड़िया ।
पूंछ नाग री खांच , कालिँदी बीच कालियो ।।
गोपियां पिँचे गाल ,चोर ठाय चितचोर ने ।
भल मोर पंख भाल ,कुंवर फुटरो कालिया ।।
रमतो लीला रास ,सुर छेड़तोह सांतरा ।
खामंद तुँही ख़ास ,क़रतो करतब कालिया ।।
सोरठा करे शोर ,सब कवियां रा सांतरा ।
डग डग थामे डोर ,कला करतोह कालिया ।।
जलधि पोढया जाग ,कलकी कलजुग मां कठे ।
कांव कांव सम काग ,कवि सब कूकै कालिया ।।
भाव बिना भगवान ,जग मा कोय न जोवसे ।
गलै सुँ निकले गान ,कवि हिवड़े घन कालियो ।।
बड़ मढ कर चक्षु बंद ,जोङ कर जिने जोवतो ।
मुलकतो मंद मंद ,कण कण मांही कालियो ।।
कवि हिवड़े घन कालियो ,(तो)खिन्वा चपला खेत ।
झमा झम्म झमकावती ,रमा दे कनक रेत।।
तप तप आयो ताव ,तातो तपे तवे ज्युँ तन ।
आव कालिया आव ,मंद बाम मोरे मलन ।।
••••••••••••दीप चारण
जन्मियो आप जेल में , रमियो सखा भेल में ,
नाथयो नाग खेल में , रचे लीला नित हैं ।
सब देवन में न्यारौ , मैया नंद को दुलारौ ,
ब्रज गोपियां को प्यारौ,राधा की तुं प्रीत हैं ।
बंसी मधुर बजावै , नाता प्रीत रा निभावै ,
राग सब ने रिझावै , गावै मीठा गीत हैं ।
गुण जै थारा गावै , शरण जो थारी आवै ,
पल माय मुक्ति पावैं , साचो थुं ही मीत हैं । [1]
मटका फोड़ लैयगौ , मन मोहन माखन ,
पकड़ रही गोपियां , पुछत सवाल हैं ।
भागे आगे नंदलाल , पिछु पिछु ग्वाल बाल,
गोपिया गुस्सै उं लाल , मुलकै गोपाल हैं ।
कान्हा को पकड़ कान , जसुदा के पास लाये ,
कुड़ी बोले ऐ गोपियां , फांसे तोरो लाल हैं ।
म्हुं तो चराऊं गईंया , सजा नाहि दिजौ मैंया ,
चोर तो हैं दाऊ भैंया , कुड़ौ ओ बंवाल है । [2]
घुंघराले काले काले , लाम तेरे नंद लाल ,
लोचन विशाल लाल , चाल मराल सम ।
सीस मोर पंख सोहे,धनंख सी तोरी भोहें ,
मैया उभी रूप जोहे , चांद को चकोर सम ।
सांवरी सलौनी छवि , मुख पर तेज रवि ,
छंद तोरा गावै कवि , नदी के निनांद सम ।
मधुर बंशी बजावै , बन में धेनू चरावै ,
छवि कवि दीप गावै , पण शब्द ग्यान कम। [3]
नाचै कुदे घर नंद ,छङा बजे मंद मंद ,
मुलकै बाल मुकुंद , ब्रज मा आनंद हैं ।
सांभल अधर स्पंद , पट झट खोल बंद ,
कर उर मा आनंद , तुहीं रघुनंद है ।
जाणे तुंही जुद्ध द्वंद , हारे तोसे जरासंध ,
पुष्प की तुंही सुगंध , काव्य तुं प्रबंध हैं ।
मैं बालक बुद्धि मंद , माधा काट मेरो फंद,
सब्द ग्यान दे जै चंद , रचे दीप छंद हैं । [4]
•••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
जन हरण घनाक्षरी
नटवर नटखट पनघट पर धर पग मम कलइ नह पकड़ किसना ।
पनघट पर घट भरन चलत पणिहरि कहत घट मत पटक किसना ।
घट पटक पटक कर मम कर नह पकड़ जल न हर लज रख किसना ।
मम भँमर नयन अटक जकड़इ बिच नटखट नटवर कमल नयना ।
•••••••••••••••••••••••••दीप चारण
होली (कृष्णा और पणिहारी )
कटी लचक लचक कूच उचक उचक
धर घट पनिहारी पनघट जात हैं ।
वन में आज बनवारी भरके पिचकारी
काहे राहे रोककै मंद मंद मुस्कात हैं
कान्हा कंचुकी मोरी तंग लगा ना मोहे रंग
भिगा ना मोहे संग अंग उघरी जात हैं ।
दयानिधे करो दया हरो नाहि मोरी हया
यो जग बड़ो निर्दयी बनावत बात हैं ।
••••••••••••••••••••••••दीप चारण
राधा कृष्णा रास
गौ टोले गोपाल , गीत मुरलिये गावतो ।
भूली गोपी भाल , काम निवेड़ा कालिया ।।
वृंदावन कानो वहिर , धेनॉ टोले धोल ।
भेलो भातो भायला , खवाईस मन खोल ।।
खेतां चराय खोपियां , खेलतो रास खेल ।
ग्वाले राधा गोपियां , मोकली प्रीत मेल ।।
लइगो मन हर संग , नैण बाण मारि नट बण ।
रति रलि गोपी रंग, मदन सदन अँग माधवा।।
मन मोहन बजत मुरली , पुगी गोपियाँ पास ।
बलम बिन बनी बावली , रमे स्याम सँग रास ।।
गोपी सुध बुध बिसर गी , पाय स्यामलो पास ।
डग डग बजाय डंडिया , रमे स्याम सँग रास ।।
डणण डणक्का डंडिया , छणण छड़ा छणकार ।
राधे माधे सँग रमी , घट पटक घूँघट घटा'र ।।
•••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
सुपंखरो
चढी ऐराऊत देवराज घोर मेघ घेर आयो ।
तपे ब्रज कै तणो तड़ीत छोड़ तोप ।।
हर ओर हाहाकार हरेक देखे हरि को ।
डबो डब ब्रज डूबे करी सक्र कोप ।। [1]
गाजे मेघ तेग वेग गुड़ायकै घणा गड़ा ।
खला खल खाला बाजै थर्र कंपे हाङ ।
आय हरि हांसतो पहाड़ उपाड़ आंगली ।
ताड़ ताड़ कियो दंभ फंद भंज फाड़ ।। [ 2]
••••••••••••••••••••••दीप चारण
बिछिया बजावां छड़ा छणकावां गीत गावां,
नाचां झूमे घूमे चूमे जपे त्मारो नाम।
गोपी कै गा गाना छाना माना छूप ना सुजाना ,
सूर साधे धेनू बांधे रीझा राधे श्याम।।
ग्वाला वृंदावन वाला नाग ने नाथण वाला,
नट्ट खट्ट नंद लाला जोड़ा तनॉ हाथ ।
वनवारी गिरधारी तन्न मन्न सब्ब हारी,
दीन री पूकार सूण आओ दीनानाथ।।
सारी रो बधायो चीर टेर द्रोपदी री सुण
ताण ताण थ्काया दुसासण पाण।
कौरवांरी देखे बुद्धि भीर आयो पांडवांरी
बंशी बजाये चलाया थें पार्थरा बाण।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
अरसात सवैया
बातइ मानव मानत गोकुल ग्वाल नटीवर माधव राज की ।
साम सदा इक बात कहे मत मुरत पूजत वासव राज की ।
भोग न देवत देवन को अब कोप करी मघवा घन राज की
गाज पङी बरखा बरसी गिरि धार लियो जय हो जदुराज की ।
••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
। किरीट सवैया ।
मोहन साध सुरं बजती मुरली मधुरं मन कानन होयन ।
राग सुनी मधरी मधरी चल गोपि निहारि लगी मन मोहन ।
माधव लोचन लाल लगे मद मादक मोहक नाचत गोपन ।
मोर बनी रमती रमिया कर थामत आपु बनी मधुसूदन ।
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
झमाल
मुख माखण चुपड़योङो , जसुदा पकड़त कान ।
म्हैं नाहि माखण खायो , मावड़ी बात मान ।।
मावड़ी बात मान , खायगो भाउङो ।
काट भाउ रा कान , फांसयो कानुड़ो ।।
रमावै नाहि साथ , चिड़ावै हैं मनां ।
मैया मेरी मात , मोल लाया तनां ।।
सदा भिड़ावै सखा नै , राजा बणतो आप ।
चुतर कैवै कर चौरी , अजरो दाउ अनाफ ।।
अजरो दाउ अनाफ , मटका फुड़ावतो ।
करतो माखण साफ , न मनां चखावतो ।।
चौपड़ ठायो चौर , माखण चुराणियो ।
भाउ तेरो भौर , मोल मम आणियो ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
जमुना तट पर खेल जमायो।
लात मार तें कालि जगायो ।।
फण कूद कूद कान्हो फोड़े ।
नागणियां उभी हाथ जोड़े ।।
फण पर नाचत ता ता थैया ।
नटखट नटवर नाग नथैया ।।
••••••••••••••••दीप चारण
जमना तट पनघट सुनो , माधा मारग मोङ ।
चुगली न खाय गोपियां , माखण मटका फोङ ।।
मथुरा मत बसे माधा , माखण चाखण आय ।
चुगली न करे गोपियां , भावै जितरो खाय ।।
साम बिना पनघट सुनो , पटकै घट पणिहार ।
छाछ लेय'र छोहरियां , अडिकै गोकुल द्वार ।।
••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
सांवरिया ने ओलभो
पलकां पालनहार , मीच मुलकै मोकलो ।
निरखे चंचल नार , सुप्रभात झाल सांवरा ।।
सिँधुजा दबे सरीर , सैंस सैया सुतो सांतरो ।
सुणतो नी अब पीर , सासरै पड़यो सांवरो ।।
खोले कपाट कान , सांभलो आज ओलभा ।
मग मग पड.सी मान , पछतासो पछै सांवरा ।।
फेड़ले (या) अब्ब तेड़ले , (तु) जाणे तारणहार ।
देख'र दुखड़ा दीप'सा , लगो(लुगड़ा)चोर रै लार ।।
मो मन मन री मार , घट घर घण घुम खावतो ।
जग तज लुकियो जा'र , सूतो सागर सांवरा ।।
दीनां खत मन दूत , बोलां क्यां नी बांचतो ।
भगतां लागै भूत , सिरकसो कैथ सांवरा ।। ?
जा लुक्यो जदुराज , सागर तलेह सीप मा ।
आलसी भयो आज , संभल जा रे सांवरा ।।
ग्वाल गोपियां लाडला , नंदलाल रा नग्ग ।
एकर सामो आव तो , पटकूं झाल'र पग्ग ।।
•••••••••••••••••••••••दीप चारण
रचना = > प्रीत तणी आ प्यास (दीप चारण )
।।दोहा।।
माधव छवि मन मोहनी , मन हर मो मन मोह ।
तारणहारा तार लइ , तुतला (दीप)ध्यावै तोह ।।
बिरहा रह रह वापरे , प्रीत तणी आ प्यास ।
साँझ ढले आ सांवरा , ना कर दीप निरास ।।
।।चौपाई ।।
छाय बिरह की कैसी छांया ।
झुर झुर झुरगी मोरी काया ।। 1
पिय तुम जाय बसे परदेशा ।
नैन अडीकै पंथ हमेशा ।। 2
चातक सम दरसन की प्यासी ।
तोरी बन जाऊं मैं दासी ।। 3
पलक बंद कर तोहे पावां ।
नैन खुलत ही तोय गमावां ।। 4
रूठो ना तुम मालिक मोरे ।
विनय करूँ मैं सम्मुख तोरे ।। 5
भितर तुमइ तो बाहर आवो ।
छुपत काहे मोहे दरश दिखावो ।। 6
मुकुट मोर पंख हँसी हरि मुख।
सब सुख फिकै तोर छबि संमुख ।। 7
मो मन मीरा ठाकुर मोरे ।
मोहे दे शरण चरण तोरे ।। 8
मो मन राधा तुम हो माधा।
दूर करो स्याम मिलन बाधा ।। 9
पीर पिया अब मोरी जानो ।
छलिया तोसे कछु ना छानो ।। 10
तो बिन जग मा घोर उदासी।
सीप फिरे सागर मा प्यासी ।।11
पिया स्वाति बूंद बण पधारो।
हरि भाग जगा आय हमारो ।। 12
ह्रदय पीर सहकर मैं हारी ।
मन कर हरो भरो बनवारी ।। 13
निशदिन तोरे चरण दबाऊ।
गुण गोविन्द तिहारा गांऊ ।। 14
मुरली मधुरम आय बजाओ ।
गिरधर सुन्दर रास रचाओ ।। 15
मो मन गोपी तुम हो ग्वाला ।
माखण चाखण आ गोपाला ।। 16
भरन चली जमना तट गागर ।
गुलेल ले कर आ नट नागर ।। 17
कंकरिया कान्हा आकर मारे ।
बँसी बजा भानुजा किनारे ।। 18
उमड़ घुमड़ आ रे घन श्यामा।
स्नेह सुधा बरसा घण नामा ।। 19
करुणाकर दिख मोहे कण कण ।
हियप्रिय आ हरि हर्षा हरक्षण ।। 20
जंत्र मंत्र मैं कछु ना जानत ।
मालिक माधा तोहे मानत ।। 21
पालत मन में तोरी प्रीता ।
मैं ना जाणूं पूजा गीता ।। 22
सखा बणे तारे तुँ सुदामा ।
हरण करे रुकमणि कर थामा ।। 23
वडोय विशाल तोरो वैभव ।
कृपा करो करुणाकर केशव ।। 24
गावत सो पावत गज बाजी ।
जब ही जदुराज होय राज़ी ।। 25
तन मन नटवर तो पर हारी ।
बिरह भंज मोरो गिरधारी ।। 26
मनमोहन मुरली धर कर ।
चितचोर न जा चित हर कर ।। 27
पधार पुराण अढार करता ।
दया कर दंभ इंदर हरता ।। 28
तुम कंज लोचन चक्रपाणी ।
तुही तुही जय गीता वाणी ।। 29
परम पुरुष तुम्हीं पुरुषोत्तम ।
नमो निरंजन नमो नरोत्तम ।। 30
विरह हर विनोद विश्वरूपा ।
भाल एक'र द्वारिका भूपा ।। 31
जमना तट तें खेल जमायो ।
काली तें फण फोड़ भगायो ।। 32
पांचाली रो वधाय अम्बर ।
पड़े न तो बिन पार पितांबर।। 33
पार्थ तनॉ जद सार्थी पायो ।
जुद्ध पांडवां तेंइ जितायो ।। 34
नमो नमो जय जय जगदीशा ।
कान्ह सर्व हर लिजै कलेषा ।। 35
भंज साद सुण भव रा भेवा।
मो घर कर वास वासुदेवा ।। 36
सदा मन माँगत बड़ो स्वार्थी ।
परमेश्वर मन कर परमार्थी ।। 37
जयो जयो जपुँ जय जदुराजा ।
अरज सांभलो सुण आवाजा ।। 38
दया करो रे देवकी नंदन ।
बाति दीप करत जल'र वंदन ।।39
तारणहारा आवो तारण ।
पाण जोड़ गावै ओ चारण ।। 40
।।दोहा।।
ऊँची भलां उडावजो , प्रभु थांरी म्हुँ पतंग।
हरि उर ने हर्षावते , सदा राखजै संग ।।
भव बाधा भल भांजजो , स्याम सदा रह संग ।
सिमरत सिमरत सांवरा, उर मा उठत उमंग ।।
••••••••••••••••••••••दीप चारण
म्हुं सुदामा कलजुग रो , न पुगूं थांरै द्वार ।
माधा मेट दरिद्रता , कवि रो करो उद्धार ।।
हरि एक हजार नाम , हरि हरदम कष्ट हरतो ।
सुबह इ हरि हरि साम , जपतो जाजै जीवङा ।।
बरस ए जाय बीतता , बिरह बधे ओ बोत ।
प्यासी जुगॉ सुँ प्रीत री, हरि रँग कद हरि होत ।।
••••••••••••••दीप चारण
पनपायो तो पाल , पूज्य मम पालनहारा ।
लक्ष्मी बिसरे लाल , समझाय दिजै सांवरा ।।
•••••••••••••••••••••••••दीप चारण
कमला भेजौ कंत ,भोलावण देय'र भली ।
मौज करे सब संत , भूंडो कवि दीप भुगते ।।
•••••••••••••••••••••••••दीप चारण
हालरियो हुलरावतो , हरदम लुकाउँ हाल ।
माखण टाबर मांगता , गिटाउँ कठैउँ गोपाल ।।
•••••••••••••••••••••••••दीप चारण
गावुँ हुँ मैं बिन ग्यान गुण , खाजै मत ना खार ।
स्याम म्हारी पुकार सुण , उलझना उं उबार ।।
श्याम श्याम जपु नाम , नमां रातदिन नाम ले ।
किजौ पूर्ण हर काम , सब्द दीप रा सांभले ।।
तरणी श्यामा तार, डब डब भव उदधि डुबती ।
परचो दे कर पार , सब्द दीप रा सांभले ।।
छटा आ छंट छंट , अरक लुकावै आकरो ।
बधे जुड़ बंट बंट , घन स्याम निरालो घणो ।।
प्रीत तणी आ प्यास , बिरहा रह रह वापरे ।
ना कर दीप निरास ,साँझ ढले आ सांवरा ।।
मुरत मीरा समाय , स हय ईसरा तारियो ।
समाय सकुटुम मोय , मौत खळॉ मत मारजे ।।
स्यामो आसी साय ,नितरो धरे रूप नवो ।
पात्सा पड़सी पाय , दैख्तो जाजै दीपड़ा ।।
•••••••दीप चारण
झांकु स्याम चढ झरोखा , दिसा द्वारिका देख ।
बंसी मघुर आय बजा , काढ हिये री मेख ।।
म्हुं मीरा मरुदेस री , जगी प्रीत जदुराज ।
चलूं द्वारिका आज , सामो आजै सांवरा।।
मीरा
वीणा बजाय बिरहणी , गीत बिरह रा गाय ।
नाह नरायण आय सुण , आतुर अधर बुलाय ।।
वीणा बजाय बिरहणी , तणणनं करत तार ।
घन स्याम मन भिंजोय दे , मीरा गाय मलार ।।
मीरा मन बन मोर बन, झुमती नचती जोर ।
आय घुमंत घिरंत अति ,स्याम घटा घनघोर ।।
वीणा बजाय बिरहणी , गीत बिरह रा गाय ।
मीरा कंठ राग मधुर , सुणे सांवरा आय ।।
°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
मीरा और सांवरा कवित
मेरो तो हैं नंदलाल, जैरै मोर पंख भाल,
जैरै रंग रंगी लाल, नैण जाय लड़ीया।
मन में माधव तेड़,इकतारे तान छेड़,
पद्य री बणार मेड़,मीरा खेत खड़ीया।
बिरहा बरखा नोय, बोल तणा बीज बोय,
नेह रा निदाण होय, कोठा लाटा घड़ीया।
फसलां रा लागा ढेर, मधुसूदन की मैर,
तन मन गाय टैर, माधे मांहि बड़ीया ।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
माधव मेरे मीत
मन्न मनोहर मोहके, मुस्कात तु टँग भींत।
बैण दो बोल बन्तला, माधव मेरे मीत।।
छंदा दोहा सोरठा, गा नी जाणू गीत।
बैण दो बोल बन्तला, माधव मेरे मीत।।
प्यासो पंछि पुकारतो, पाल मन्न में प्रीत।
बैण दो बोल बन्तला, माधव मेरे मीत।।
सुनकर दिल में दबा, मंद मंद संगीत ।
बैण दो बोल बन्तला, माधव मेरे मीत।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
मन वन कहुके मोर, विरह री घिरी बादली।
समीर सम कर शौर, मंद मंद आ माधवा।।
मम मन होय मसाण, मरण लगा अरमान अब।
राधा री है आण, मोड़ो मत कर माधवा।।
आवन तजू न आश, पथ तक तक नैन थकिया।
बूझा अखियन प्यास, कर मत मोड़ो केशवा।।
इर्द-गिर्द (हो) आभास, गर कण कण तुम बसे।
दीप ने दिखा (दे) रास, मोड़ो मत कर माधवा।।
चुग चुग आखर चंद, माला बणावण म्हुँ खपूं।
जाणूं न कोय छंद, सब थूं जाणे सांवरा।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
जन तन मन कर कर जतन, जोवत तो जदुराज।
छल कर कर छलियो छुपत, उतरत धरा न आज।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
जेल तें तोड़ जन्मते ,
पूगो ब्रज में पैल।
खिण खिण मांही खेलियां
श्यामला सब्ब खेल।।
°°°°°°°°°°°°दीप चारण
आखर माया और, दौड़ती भागती फिरे।
छूटे हथ लग छोर, शब्द चिकणे सांवरा।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
दयालु वड दातार , देव अवर नह दीसतो,
तें तणा बंध्यां तार, टूटे कदी न सांवरा।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
लाल नंद रो ल्खाय, प्रीत सूं मोर पाँखड़ी।
सबदन स्याम समाय, मीरा सो जे होय मन।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
पूजा करे न पाठ, नित नित ना ही नेमसूं।
ठहसी ठावा ठाठ , दोहा ठाते दीपड़ा ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
राम रे सिय हेक ही, हरि रे सोल हजार।
दोनूं ने ही दीपड़ो, झुक झुक करे जुहार।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
राजी करतां रुक्मणी, पाजेब किनी पेश।
बागां बीचे बैठकर, केसव गूंथे केस।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
गोकुल मांय गवालियो,गुजरियां री जिमे गोठ।
गोपे तज मथुरा गयो, राधा चित्त कर चोट।।
राधा चित्त कर चोट, गोकल वृन्दावन तज्यो।
संग ले दाऊ सोट, करणे कंस सूं कजियो।
बाल गया बण काल, मामे ने चटावै धुल।
जय हो जसुदा लाल, भलाई तज्यो गोकुल।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
चित्तार चित्तचोर नै, चित्त मत ना चटक्क।
जोड़ो कर किरतार नै, भव भव मन न भटक्क।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
पापी करले प्रीत, काटण कलयुग कोजियो।
जग में दिराय जीत, साचो मीत इ सांवरो।।
कुंडल कवच उखाड़, पांडव पांचों तारिया।
पापी कौरव पाड़, साचे मीत इ सांवरे।।
खोटा देखे काज , भीर आयोह चीर ले।
राखण द्रोपद लाज , साचो मीत इ सांवरो।।
सथ्थ पार्थ रै रथ्थ, समर रचे बण सारथी।
हय लगाम धर हथ्थ, साचो मीत इ सांवरो।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
औगण भया अनेक, मन ओ पापी मोकलो।
हरि हरे है हरेक, दिल सूं पुकार दीपड़ा।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
|| सुजान अष्टक दीप चारण कृत||
।। दोहा।।
गोविंद थारा गांउ गुण , धर उर सदैव ध्यान।
दूनिया बिच्च दीप नै, सोरो राख सुजान।।
।। छंद भुजंग प्रयात।।
नमो कंज नैनं नमो धोल धेनं।
नमो कृष्ण वैणं करे गोप सैनं।।
गुलाबी कपोलं शिखी पंख भालं।
नमो कंश कालं नमो नंद लालं।। [1]
बिछा बैठ जाजं सखी कान्ह साजं।
बँशी सूर बाजं घनं घोर गाजं।।
घले घेर घूमेर गोपी विशालं।
नमो कंश कालं नमो नंद लालं।। [2]
पगं नाग दाबा नमो श्याम आभा ।
नमो पीत गाभा नमो दाउ भाभा ।।
सखा संग खेलं लई गेंद ग्वालं।
नमो कंश कालं नमो नंद लालं।। [3]
झुमे राधिका श्याम संगीत घोळे।
हळे कृष्ण नीरं हिंडोळे हिळोळे।।
किनारे किनारे करंतो कमालं।
नमो कंश कालं नमो नंद लालं ।। [4]
भला काम सागै उभो दाउ भाई।
हथां नाथिया कानु दैत्यं किताई।।
चले चित्तचौरे लळो मंद चालं।
नमो कंश कालं नमो नंद लालं।। [5]
सुणो साद गोविन्द बंशी बजैया।
तुँही तार नैया हमारी खिवैया।।
हरीया करो केशवं हाल चालं।
नमो कंश कालं नमो नंद लालं ।। [6]
जपूं छंदड़ा पाण जोड़े सुजानं।
पुकारू मुकुंदं धरे चित्त ध्यानं ।।
बिसारै मतै दास नै ब्रज्ज बालं।
नमो कंश कालं नमो नंद लालं ।। [7]
तुँही प्रीत प्रीतं तुँही बिर्ह गीतं ।
तुँही मन्न मीतं तुँही मन्न जीतं।।
जपे 'दीप' माधा हिये प्रीत पालं।
नमो कंश कालं नमो नंद लालं ।। [8]
।। छप्पय।।
साद सुणोह सुजान, शीष नितरो नमाऊं।
साद सुणोह सुजान, छंद नित रा छलकांऊ ।।
साद सुणोह सुजान, गुण नित र थांरा गांऊ।
साद सुणोह सुजान, परचा तुरत ही पांऊ ।।
अनुभव भव रा घण आकरा, कर नी जाणूं चाकरी।
हे! दवारकां रा ठाकरां, उभो हुँ शरणां आपरी।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
दया मुकुंद काट फंद गाय छंद दीपड़ो।
अपार आस आपसूं तुहीं न दौड़ आवतो।
धरेह ध्यान गाय गान देय साद ध्यावतो।।
जले जले जगंमगं जगंमगं पड़ो पड़ो।
दया मुकुंद काट फंद गाय छंद दीपड़ो।।
दया करो दवारिकेश दीप पे दयानिधे।
कृपा करो दुखं हरो नमो करूउणानिधे।।
सुतोह थूंह सासरे सहाय आय हो खड़ो।
दया मुकुंद काट फंद गाय छंद दीपड़ो।।
सदा रही सहाय आय मात साथ सारदा।
हरे रमा रमे न मोकु मोकुदे दिदारदा ।।
सिफारिशॉ करोह सांवरा इ भामणी भिड़ो।
दया मुकुंद काट फंद गाय छंद दीपड़ो।।
गरूढ चढ्ढ चक्रपाणि चक्र पाण धारियो
मदत्त गज्ज काज दैत मगरमच्छ मारियो।
भुजंग कूटयोह कालियो रमे रमे दड़ो।
दया मुकुंद काट फंद गाय छंद दीपड़ो।।
रुड़ीह बांसुरी बजाय राधिका रिझावतो।
चरूड़ि हांडि तोड़ फोड़ माखनं चुरावतो।।
गुलेर लेर गोपियां इ घेर फोड़तो घड़ो।
दया मुकुंद काट फंद गाय छंद दीपड़ो।।
लुके लुकाय लूगड़ा तटे नदी रवीसुता।
निहारतो सिंगार नार जोय रोज झीलतां।।
लला जसूद नंद लाल अज्जरो तुहीं बड़ो।
दया मुकुंद काट फंद गाय छंद दीपड़ो।।
उबार तार ले सँसार क्षीर सों इ सांवरा।
अढार ही पुराण ऐ करे बखाण आपरा।।
बलाह टालने उपाड़तो नगं प्रकृति जड़ो।
दया मुकुंद काट फंद गाय छंद दीपड़ो।।
गुवाल हाथ गेडियो कँधेह कालि कांबली।
गली गली छलीय छाय गोपियांह बावली।।
लिलाड़ मोर पंख कंज अंख पांव मा कड़ो।
दया मुकुंद काट फंद गाय छंद दीपड़ो।।
वनं गुँजाय बांसुरी बजाय गीत गावतो।
कदंब अंब बृक्ष बीच राधिका रिझावतो।।
पगाह पेहरावतो घणोह बाजणो छड़ो।
दया मुकुंद काट फंद गाय छंद दीपड़ो।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
2122 2122 212
दीप चारण कृत
काज वडा मो काढदे, हरि चढ गरूड़ आय।
पाल प्रीत पूकारतो, दीपड़ोह विरदाय ।।
साय आ मम चढ गरूड़े शामळा।
पार्थ रै रण काज संगा शामळा
अंग अहिल्या किय सुचंगा शामळा
साद सुण नर रो इ भर्यो मायरो,
साय आ मम चढ गरूड़े शामला ।
तार तारो ठाय ध्रुव ने शामळा
तारियो प्रहलाद तैं ई शामळा
कंस हिरणाकष किताई मारिया,
साय आ मम चढ गरूड़े शामळा ।
सब सुदामा ने दियो तें शामळा
पीर मीरा री तु पी ग्यो शामळा
ईसरो परमेसरा तें तारियो,
साय आ मम चढ गरूड़े शामळा ।
प्रीत राखो मीत राखो शामळा
कवित चाखो जीत राखो शामळा
राह आडो शूल कलयुग कोजियो,
साय आ मम चढ गरूड़े शामळा ।
भीलणी रा बोर चाख्या शामळा
खीचड़ो घण तें इ खायो शामळा
पाण चारण गुड़ ड़ हुक्का पीवतो,
साय आ मम चढ गरूड़े शामळा ।
गीत नित थारा इ गाऊं शामळा
प्रीत नित थारी इ पाऊं शामळा
पाण निज सिगरेट थानें पावसूं,
साय आ मम चढ गरूड़े शामळा ।
आज सुण ले टेर म्हारी शामळा
आज कर दे मैर मो पे शामळा
भाल थारो जन्म जन्मों मानसूं
साय आ मम चढ गरूड़े शामळा ।
साय आयो दौड़ गज री शामळा
द्रोपदी री तें लाज रखली शामळा
"दीप "कर जोड़े तनाॅ पूकारतो,
साय आ मम चढ गरूड़े शामळा ।
साय करो हे श्याम, तरणी म्हारीह तारो।
साय करो हे श्याम, आफत सूं अब उबारो।।
साय करो हे श्याम, कारज सब रा सुधारो।
साय करो हे श्याम,पुनः लो अब्ब अवतारों।।
नित पुकारूं तो नामले, श्याम साद अब सार ले।
डोर निज हथ्थ थामले, करुणाकर मो तार ले।।
°°°°°°°°°°°°°°° दीप चारण कृत
।। सवैया छंद।।
मालती (मतगयंद) सवैया
बात बनावत मात रिझावत, बात मनावत
आतुर लल्लो।
तात रिसाजत मात रिसाजत, झट्ट मनावत झाल इ पल्लो।।
यो छलियो छल के जसुदा लइ, गो झट चाखन माखन छाने।
कानन कानन धेनन चारन, ग्वाल गयो मुरली मुख ताने।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
छूप रयो मम देख दशा रस ले हस मो पर काहु युँ छीजै।
राजन को अब ना कविराज रुचे जदुराज सुने थुँइ डीजै।।
छैल छबील कला छलिया कर तारउ मो मन तो सँग भीजै।
दीप दऊ कर जोर पुकारहि गिरधर सुंदर दर्शन दीजै।।
पांडव भामणि टेर सुणी भल भीर उभो क्रुध कौरव खीजै।
दाल चपाति जुगार चहे जन निर्धन चाह न बर्गर पीजै।।
देव दयाल दतार सहायक तू किरतार कृपा झट कीजै।
दीप दऊ कर जोर पुकारहि गिरधर सुंदर दर्शन दीजै।।
गाय उछेर बछेर उछेर गिलोर लयेर हले गउपाला ।
गोपिय गाय भुलाय, निहार बिसार चली कज वो घर वाला।।
धेनु चरावन , रास रचावन, घूम रया ब्रज का बँशिवाला।
छेड़त लूक'र, गूजरियां नित, पन्घट पथ नट खट्ट निराला।।
अरसात सवैया
बातइ मानव मानत गोकुल ग्वाल नटीवर माधव राज की ।
साम सदा इक बात कहे मत मुरत पूजत वासव राज की ।
भोग न देवत देवन को अब कोप करी मघवा घन राज की।
गाज पङी बरखा बरसी गिरि धार लियो जय हो जदुराज की ।।
। किरीट सवैया ।
मोहन साध सुरं बजती मुरली मधुरं मन कानन होयन ।
राग सुनी मधरी मधरी चल गोपि निहारि लगी मन मोहन ।
माधव लोचन लाल लगे मद मादक मोहक नाचत गोपन ।
मोर बनी रमती रमिया कर थामत आपु बनी मधुसूदन ।
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
जगदीशाष्ठकम् ( दीप चारण कृत)
।। दोहा ।।
सुर दे माता सारदे, अम्बा दे आशीष।
लछमी माते लाज रख,जपे दीप जगदीश।।
।। छंद मोतीदाम ।।
तुहीं मम मात तुहीं मम तात।
तुहीं मम मीत तुहीं मम भ्रात।।
समो झट आय मिलो घल बाथ।
नमो जगदीश निरंजन नाथ।। [1]
तुहीं मम भीर, तुहीं मम पीर।
तुहीं मम लाज, तुहीं मम चीर।।
लगूं नित पाय, नमे नित माथ।
नमो जगदीश निरंजन नाथ।। [2]
बसा उर कान सदा धर ध्यान।
उचार विचार सुसार सुजान।।
सदा सिंवरे जन जोड़'र हाथ।
नमो जगदीश निरंजन नाथ।। [3]
तुहीं गिरि ओड़ सुरेश मरोड़।
तुहीं तम तोड़ तुहीं रणछोड़।।
प्रभू! परमेश सदा रह साथ।
नमो जगदीश निरंजन नाथ।। [4]
सुणे तु सदाय करूण पुकार।
जपूं जय जैय करूंह जुहार ।।
नशीब सुधार इ ठाठज ठाथ।
नमो जगदीश निरंजन नाथ।। [5]
तुहीं जग मंडण पालनहार।
धरा धरि दाढय आसुर मार।।
पुजे नर नार ऋषी मुनि जथ्थ।
नमो जगदीश निरंजन नथ्थ।। [6]
तुहीं सुख वैभव देवण वाल।
तुहीं दुख भंजण दीन दयाल।।
तु कौरव कूटण ठाय भराथ।
नमो जगदीश निरंजन नाथ। । [7]
तुहीं मम प्रीत तुहीं मम रीत।
तुहीं मम छंद, तुहीं मम गीत।।
तुहींज पड़ाव, तुहीं मम पाथ।
नमो जगदीश निरंजन नाथ।। [8]
।। छप्पय।।
कंसां करण तमाम, कान्ह नव रास रचायो।।
रावण रोलण राम, अयोध्या रघुकुल आयो।
लीला कर कर लाख, जग ने नित जगमगायो।
चटपट माखन चाख, छलियो वृंदावन छायो।।
ते भख बोर भीलणी तणा, भक्त रिझाया ते घणा।
भगवन वर दे कवि दीप ने, भणे स्तुति छंदड़ा बणा ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
सुर छेड़े जद सांवरा
बागां छाय बहार, डाल डाल अलि डोलता।
पनघट चले पणिहार, सुर छेड़े जद सांवरा।।
करे गीत गुंजार, डाल डाल अलि डोल नै ।
बागां छाय बहार, सुर छेड़े जद सांवरा ।।
गोपी गावत गीत, उछेर उछेर खोपियां।
पथ पथ पनपे प्रीत, सुर छेड़े जद सांवरा।।
कोकिल करे किलोळ, मुदित मृगला कूदता ।
गायां बछड़ा टोळ, सुर छेड़े जद सांवरा ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
नटवर जातो नट्ट
लुक लुक जाऊं लाजती, उदित होत जद भाण।
जोये पनघट जावती, पकड़त नटवर पाण।।
छल कर छलियो छेड़तो, घेर फोड़तो घट्ट।
देवती ओलबा जदे , नटवर जातो नट्ट।।
खाटो माखण खोसतो, बुकियों पकड़े बट्ट।
जद जद जसुदा झांपती, नटवर जातो नट्ट।।
कंकर गुलेर गेरतो, तुटती गागर तट्ट।
पकड़ कान जद पूछती, नटवर जातो नट्ट।।
सावली सुरत सोवणी, मेलत पग मट मट्ट।
बंसी बजा दे बोलती, नटवर जातो नट्ट ।।
देखतां लार दौड़तो, राधे राधे रट्ट।
नाचण रो जद कैवती, नटवर जातो नट्ट।।
गौ रस लूट'र गौखड़ां, गटकतो छाछ गट्ट।
होत छती जद चोरियां, नटवर जातो नट्ट।।
लटक'न साख लुकावतो,वट झट चढनै पट्ट।
लाजती जदे मांगती, नटवर जातो नट्ट ।।
माखण नित नित ढोळ'नै, सिरक जावतो सट्ट।
पाण पकड़ मां पूछती, नटवर जातो नट्ट।।
तें की मटका तोड़ियां, पुठां पड़ेला लठ्ठ।
हेक बात नी हांकरै, नटवर जातो नट्ट।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
रमण कृष्ण तू रास
व्याकुल मन वसंत रुत, नयन कबसे निरास।
अडिका मत अब आव रै, रमण कृष्ण तू रास।।
अब इक पल ना आवड़े, सांस सांस ने आस।
बंशी बजातो आव रै, रमण कृष्ण तू रास ।।
चित्त चंचल चकोर सो, पलकां दरसन प्यास।
आ पूनम रै चांद सम, रमण कृष्ण तू रास ।।
तान छेड़ हूं ताल दूं , पाण पकड़ आ पास।
मुरलिये स्वर फूंकदे, रमण कृष्ण तू रास।।
कानन कुंजन कुंज में, कोमल हरियल घास।
घेर धेनु अब आव रै, रमण कृष्ण तू रास ।।
चौबिसों कला चंद्र सी,उर उपजाय उजास।
अमिय कलस बण आव रै, रमण कृष्ण तू रास ।।
हे अलि! खिली कली कली, मत गूमा मधुमास।
उफ्णे मकरंद आव रै, रमण कृष्ण तू रास ।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
फिरै कठेह अहीर
बैठो का पट ले वटे, तट जमना रै तीर।
का टोगड़िया टोलतो, फिरे कठेह अहीर।।
का गुलेल लै गैरतो, गोपी रो घट नीर ।
का माखणियो चोरतो, फिरे कठेह अहीर।।
तान मुरलिये टैरतो, घन घुमड़त घीर घीर।
सुदबुद सब री सोसतो, फिरै कठेह अहीर।।
साळ्यां दूहे छाळियां, खंड नख ठासे खीर।
फुँकफुँक पदमा पावसे, ग्यो इण नीत अहीर।।
मौजा ब्रज री मोकली, सोचे सागर क्षीर।
पद्ममा पग्ग पलोटती, साह् रे सुतो अहीर ।।
गैळो काढे गाळियां, क्यूं सुणे धार धीर।
बांथ्यां आवण आउरो, फिरै कठेह अहीर।।
कष्ट भलां रा भांजियां, भलीज लीनी भीर।
म्हारे क्यूं नी आवियो, फिरे कठेह अहीर।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
डेरा देयर डाल, लेतो लुकाय लूगड़ा।
बाला रा बंवाल, जमना तट ते जादवा।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
फूंक मार कर मुरलिये, सूर ने देतो सांस।
माधो मेंदी मांडतो, राधा रमती रास ।।
अंस कंस रो खावतो, लीला कर कर लक्ख।
भोली मैया गोपियां, मक्खन दाबे कक्ख।।
कोशिशां कंस की किती, पीताम्बर नाही पजम ।
गोकुल बस बरसो बरस, कान्ह किन्ह हासल हजम।।
किण विध किण नै कैवतो, हरदम हाल हियाह।
मायळो मरम मालिकां, कैवां किण नै किंयाह ।।
हे हरि हे हरि रटत हूं, मुरलिय रि टेर हेर।
देर फेर काहे करत, कर मुझ तणीह मैर।।
सांझ सवेरे सांवरा, ना भुलूं थारु नाम।
चरण शरण हूं चावतो, ठाकुर थारै ठाम।।
मिळत उदधि उर गोमती, धज्ज फरहरे धाम।
पूगे कद वठे पांगळो, ठाकुर थारै ठाम ।।
दीनी तेंही देह, बंधन कर्मों बांधिया।
प्रार्थना करूं ऐह, मोक्ष आपजे माधवा।।
दीस्यो ना मन द्वैत, वत्स फस्सियो विस्वास में।
खावै बाड़ हि खेत, कैथ जावांह केशवा।।
शब्द रा भाव सार, जाणूं ना कछु कैवणो।
तैंहूं इ पड़े पार, कांई कहु रै केशवा।।
चालै शकुनी चाल, पासा जबरा फेंकिया।
हमकै कवण हवाल, समझ नी आय सांवरा।।
ओर घरन में आग, भर भर कान लगावता।
कहां सकेंगे भाग, समय आयांह सांवरा ।।
सोरो नी संसार, इत पग पग पर आथड़ा।
समय समय पर सार, शरणे राखे सांवरा।।
अभिनेता इक ईस हैं, सब उसके किरदार।
लीला उसकी लाख हैं, माया अपरमपार।।
सोरी सोल हजार ही, सोरा राख्या सैण ।
नारद किताइ खप लिया, करि नी किणिमें दैण।।
काबल्यत हति न कोय, रहमत तोही राखतो।
मनरुचो देतो मोय , सुक्र करुँ कैम सांवरा!।।
पात्र या कुपात्र देख, भेद भव करंतो सदा।
है सिर्फ तुहीं हेक, सिरखो राख्यों सांवरा ।।
आत्म परम कदि आप, पुण्य कर कर न पावियो।
पाप श्राप पछ्ताप, सम्मुख लाये सांवरा ।।
पाणे कीना पाप, का पैली रा पुण्य हो।
सत जन्मा रा श्राप, शुन्य करो थें सावरां ।।
कंज नैन कजरारिये, गज्जरारिये गैसु।
बोल वैण बतरारिये, हे सांवरिये मैंसु ।।
मार्यो मिण्यो मोस, जद चकरिये तृणावत चढे ।
पूतना-प्राण सोस, हल्की करी धराह हरि।।
केवट म्हारा सांवरा
सकल संसार सार, जगताधार तुहीं बड़ो।
पुगाय नौका पार, केवट म्हारा सांवरा।।
हूं देखूं संसार, मुळकतो मझधार मा।
हलाय थूं पतवार, केवट म्हारा सांवरा ।।
कदई सागर शांत, कदेई उफणतो घणो।
मिल्यो थूं एकांत, केवट म्हारा सांवरा ।।
आ उभा मगरमच्छ,(पण)चालक थूंइ चतर बड़ो।
बैगो निकलूं बच्च, सखरो केवट सांवरा ।।
टणका देखूं टापु, जीव देखुँ जग रा जबर।
उभाह साथे आपु, सफर सोरोह सांवरा।।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°दीप चारण
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