सुरा अर सिणगार
सजनी परोसती सुरा , पिया खिलावत पान ।
नेह नशा नस नस बसा, धरे नैन में ध्यान ।।
नाह बाँह कस नेह सों , अरधँग लीवी अंक ।
तकड़ अकड़ तेज तजके ,राजन साजन रंक ।।
मधुकर रस लेवण मधुर , पुगो पुष्प के पास ।
कँवलि टालियां मांय फस,पी रस बुझाय प्यास ।।
भोग नहीं कम योग सों , क्रिया सृजन की काम।
भिन्न विषय में भँमर भमे, बड़ो भयो बदनाम ।।
•••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
नेह नशा नस नस बसा, धरे नैन में ध्यान ।।
नाह बाँह कस नेह सों , अरधँग लीवी अंक ।
तकड़ अकड़ तेज तजके ,राजन साजन रंक ।।
मधुकर रस लेवण मधुर , पुगो पुष्प के पास ।
कँवलि टालियां मांय फस,पी रस बुझाय प्यास ।।
भोग नहीं कम योग सों , क्रिया सृजन की काम।
भिन्न विषय में भँमर भमे, बड़ो भयो बदनाम ।।
•••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण
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