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मेरे गीत क्या कल सुनेगा जहान् ?

मुझसे ही थी दरबारों की शान । रण में गुँजता था मेरा ही गान । अडग वचन कलम का मैं था धनी । मेरे गीत क्या कल सुनेगा जहान् ? बसता था वहीं जहां पाता मान । करता था सदा शिव शक्ति का ध्यान । कर्ण खींच चूक बतलाता था भूप की । मेरे गीत क्या कल सुनेगा जहान् ? कायरता भागती थी सुन मेरे शब्दों के बाण । सत्यता साहस सोर्य सर्जन की मैं था ख़ाण । मुंड बिन धड़ लड़ाकर मुंड से दाद पाता था । मेरे गीत का नाद क्या कल जग पायेगा जाण ? •••••••••••••••••••••दीप चारण

सुरा अर सिणगार

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सजनी परोसती सुरा , पिया खिलावत पान । नेह नशा नस नस बसा, धरे नैन में ध्यान ।। नाह बाँह कस नेह सों , अरधँग लीवी अंक । तकड़ अकड़ तेज तजके ,राजन साजन रंक ।। मधुकर रस लेवण मधुर  , पुगो पुष्प के पास । कँवलि टालियां मांय फस,पी रस बुझाय प्यास ।। भोग नहीं कम योग सों , क्रिया सृजन की काम। भिन्न विषय में भँमर भमे, बड़ो भयो बदनाम ।। •••••••••••••••••••••••••••••••••••दीप चारण