मेरे गीत क्या कल सुनेगा जहान् ?
मुझसे ही थी दरबारों की शान । रण में गुँजता था मेरा ही गान । अडग वचन कलम का मैं था धनी । मेरे गीत क्या कल सुनेगा जहान् ? बसता था वहीं जहां पाता मान । करता था सदा शिव शक्ति का ध्यान । कर्ण खींच चूक बतलाता था भूप की । मेरे गीत क्या कल सुनेगा जहान् ? कायरता भागती थी सुन मेरे शब्दों के बाण । सत्यता साहस सोर्य सर्जन की मैं था ख़ाण । मुंड बिन धड़ लड़ाकर मुंड से दाद पाता था । मेरे गीत का नाद क्या कल जग पायेगा जाण ? •••••••••••••••••••••दीप चारण