सुजान अष्टकम दीप चारण कृत

|| सुजान अष्टक दीप चारण कृत|| ।। दोहा।। गोविंद थारा गांउ गुण , धर उर सदैव ध्यान। दूनिया बिच्च दीप नै, सोरो राख सुजान।। ।। छंद भुजंग प्रयात।। नमो कंज नैनं नमो धोल धेनं। नमो कृष्ण वैणं करे गोप सैनं।। गुलाबी कपोलं शिखी पंख भालं। नमो कंश कालं नमो नंद लालं।। [1] बिछा बैठ जाजं सखी कान्ह साजं। बँशी सूर बाजं घनं घोर गाजं।। घले घेर घूमेर गोपी विशालं। नमो कंश कालं नमो नंद लालं।। [2] पगं नाग दाबा नमो श्याम आभा । नमो पीत गाभा नमो दाउ भाभा ।। सखा संग खेलं लई गेंद ग्वालं। नमो कंश कालं नमो नंद लालं।। [3] झुमे राधिका श्याम संगीत घोळे। हळे कृष्ण नीरं हिंडोळे हिळोळे।। किनारे किनारे करंतो कमालं। नमो कंश कालं नमो नंद लालं ।। [4] भला काम सागै उभो दाउ भाई। हथां नाथिया कानु दैत्यं किताई।। चले चित्तचौरे लळो मंद चालं। नमो कंश कालं नमो नंद लालं।। [5] सुणो साद गोविन्द बंशी बजैया। तुँही तार नैया हमारी खिवैया।। हरीया करो केशवं हाल चालं। नमो कंश कालं नमो नंद लालं ।। [...